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________________ ३६२ वक्रोक्तिजीवितम् वाच्यवाचकसामर्थ्याक्षिप्तस्वार्थरिवादिभिः । तदिवेति तदेवेति वादिभिर्वाचकं विना ॥ २५॥ समुल्लिखितवाक्यार्थव्यतिरिक्तार्थयोजनम् । उत्प्रेक्षा................................. ॥ २६ ॥ सम्भावना द्वारा लाये गए अनुमान के द्वारा अथवा सादृश्य के द्वारा या दोनों के द्वारा जहाँ पर वर्णनीय के आतिशय्य की उल्वणता को प्रतिपादित करने की इच्छा से 'वा' इत्यादि वाचक के बिना 'उसके से' या 'वह ही' इत्यादि प्रकारों से वाच्य बाधक के सामर्थ्य से लाए गए अपने अर्थ वाले इस आदि सम्भावना के बाचकों के द्वारा उल्लिखित वाक्यार्थ से भिन्न अर्थयोजन होता है उसे उत्प्रेक्षा कहते हैं ॥ २४-२६ ॥ ___ सम्भावनेत्यादि । समुल्लिखितवाक्यार्थव्यतिरिक्तार्थयोजनम् उत्प्रेक्षा। समुल्लिखितः सम्यगुल्लिखितः स्वाभाविकत्वेन समर्पयितुं प्रस्तावितो वाक्यार्थः पदसमुदायोऽभिधेयवस्तु तस्माद् व्यतिरिक्तस्यार्थस्य वाक्यान्तरतात्पर्यलक्षणस्य योजनमुपपादनसुत्प्रेक्षाभिधानमलकरणम्। उत्प्रेक्षणमुत्प्रेक्षेति विगृह्यते । किंसाधनेनेत्याह सम्भावनानुमानेन। सम्भावनया यदनुमानं सम्भाव्यमानस्य "तेन । सम्भावनेत्यादि । भलीभांति वर्णित वाक्यार्थ से भिन्न अयं की योजना उत्प्रेक्षा ( होती है ) । समुल्लिखित अर्थात् भलीभांति वणित स्वाभाविक ढङ्ग से ( अभिप्रेत वस्तु की) प्रतीति कराने के लिए प्रस्तुत किया गया वाक्यार्थ अर्थात् पदों का समूह रूप अभिधेय वस्तु उससे भिन्न अर्थ अर्थात् दूसरे वाक्य के तात्पर्यभूत ( अर्थ) की योजना अर्थात् उपपादन उत्प्रेक्षा नाम का अलङ्कार होता है। उत्प्रेक्षणम् उत्प्रेक्षा यह उत्प्रेक्षा का विग्रह होता है। किस साधन से (योजना की जाती है ) सम्भावना द्वारा लाये गए अनुमान के द्वारा। सम्भावना से जो सम्भाव्यमान का अनुमान किया जाता है उससे ।। __ प्रकारान्तरेणाप्येषा सम्भवतीत्याह-सादृश्येनेति । सादृश्येन साम्येनापि हेतुना समुल्लिखितवाक्यार्थव्यतिरिक्तार्थयोजनमुत्प्रेक्षैव । द्विविधं सादृश्यं सम्भवति-वास्तवं काल्पनिकश्च । तत्र वास्तवमुपमादिविषयम् । काल्पनिकमिहाश्रियते । ( सम्भावनानुमान से भिन्न ) दूसरे नङ्ग से भी यह ( उत्प्रेक्षा ) हो सकती है इसी बात को बताते हैं-सादृश्येन के द्वारा । सादृश्य अर्थात् समता के कारण भी सम्यक् गणित वाक्या से भिन्न मर्थकी योजना उतना हीहोती है । साहश्य
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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