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________________ ३२९ तृतीयोन्मेषः [इसके अनन्तर कुमारसम्भव से अधोलिखित श्लोक को उद्धृत कर कुन्तक उसमें भरतनयनिपुणमानसों के द्वारा मान्य रसाभास अलङ्कार का खण्डन करते हैं।] पशुपतिरपि तान्यहानि कुच्छादगमयदद्रिसुतासमागमोत्कः । कमपरमवशं न विप्रकुर्युर्विभुमपि तं यदमी स्पृशन्ति भावाः ।।५४ भरतनयनिपुणमानसः उदाहरणमेवोजितम् । तदेवमयं प्रधानचेतनलक्षणोपकृतातिशयविशिष्टचित्तवृत्ति [वि शेषवस्तुस्वभाव एव मुख्यतया वर्ण्यमानत्वादलङ्कार्यो न पुनरलङ्कारः । पार्वती के समागम के लिए उत्सुक भगवान शङ्कर ने भी उन ( तीन ) दिनों को बड़े कष्ट से बिताया। ये ( औत्सुक्यादि ) भाव दूसरे किसे न 'विवश कर विकार युक्त बना दें जब कि ये उन समर्थ शंकर का भी स्पर्श करते हैं ( अर्थात् उन्हें भी विकारयुक्त बना देते हैं)। (यहाँ) भरत के नय में निपुण चित्तवालों ने. उदाहरण को ही अजित कर दिया है । इस प्रकार यह प्रधान चेतन ( शिव के ) स्वरूप से उपकृत उत्कर्ष से विशिष्ट चित्तवृत्तिविशेषरूप वस्तु का स्वभाव ही मुख्य रूप से वण्यमान होने के कारण अलङ्कार्य ही है न कि अलङ्कार । इस तरह कुन्तक खण्डन का आधार वही रखते हैं जिसके आधार पर कि इन्होंने रसवदादि अलङ्कारों का खण्डन किया है और कहते हैं कि यह ( ऊर्जस्वि ) अलङ्कार भी रसवदादि को ( अलङ्कार मानने में ) प्रतिपादित किये गये दोषों की पात्रता का अतिक्रमण नहीं कर पाता ( अर्थात् यह भी उन्हीं दोषों से युक्त है ) इसलिये ( इसे अलङ्कार मानने में ) अभी कहे गये ( दोषों ) की योजना कर लेनी चाहिए। इसके बाद उदात्त अलङ्कार की भी उन्हीं समान तर्कों के आधार पर अलङ्कारता का खण्डन करते हैं। सर्वप्रथम उदात्त के प्रथम प्रकार के उद्भट द्वारा किये गये लक्षण उदात्तमृद्धिमद्वस्तु ॥ ५५॥ की आलोचना करते हुए कहते हैं कि अत्र यद्वस्तु यदुदात्तम् अलङ्करणम् । कीदृशमित्याकाक्षायाम् 'ऋद्धिमत्' इत्यनेन यदि विशेष्यते, तद्यदेव सम्पदुपेतं वस्तु वर्ण्यमान. मलङ्कार्य यदेवालङ्करणमिति स्वात्मनि क्रियाविरोधलक्षणस्य दोषस्य दुर्निवारत्वात् स्वरूपातिरिक्तस्य वस्त्वन्तरस्याप्रतिभासनादूर्जस्विवत् ।... यहाँ जो ( वर्णनीय ) वस्तु है वह उदात्त अलङ्कार है। कैसी वस्तु
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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