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________________ SAR तृतीयोन्मेषः २८३ यत् कविकौशलं निर्मातृनैपुण्यं तेन शालते श्लाघते या सा तथोक्ता । अन्यच्च कीडशी-नूतनोल्लेखलोकातिक्रान्तगोचरा । नूतनस्तत्प्रथमो योऽसावुल्लिख्यत इत्युल्लेखस्तत्कालसमुल्लिख्यमानोऽतिशयः, तेन लोकातिक्रान्तः प्रसिद्धव्यापारातीतः कोऽपि मर्वातिशायी गोचरो विषयो यस्याःमा तथोक्तेति विग्रहः । तस्मानिर्मितिस्तेन रूपेण विहितिरित्यर्थः। तदिदमत्र तात्पर्यम्-यन्न वर्ण्यमानस्वरूपाः पदाथोः कविभिरभूताः सन्तः क्रियन्ते, केवलं सत्तामात्रेण परिस्फुरतां चैषां तथाविधः कोऽप्यतिशयः पुनराधीयते, येन कामपि सहृदयहृदयहारिणी रमणीयतामधिरोप्यते । तदिदमुक्तम् लीनं वस्तुनि इत्यादि ॥१०॥ प्रस्तुत वृत्ति वाली वस्तु की निर्मिति अर्थात् निर्माण अपर अर्थात् दूसरी वक्रता होती है । कैसी वक्रता-सहज एवं आहार्य कविकोशल से सुशोभित होने वाली। सहज का अर्थ है स्वाभाविक, एवं आहार्य का अर्थ है-शिक्षा एवं अभ्यास के द्वारा अर्जित अर्थात् प्रतिभा एवं व्युत्पत्ति की परिपक्कता से प्रवृद्ध जो कवि का कौशल अर्थात् ( काव्य का ) निर्माण करने वाले का चातुर्य उससे शोभित अर्थात् प्रशंसित होने वाली ( वक्रता होती है)। और कैसी है ( वह वक्रता)-अभिनव उल्लेख के कारण लोकातिक्रान्त विषय वाली है । नवीन अर्थात् उस ( वस्तु) का जो पहले-पहल उल्लेख किया जा रहा है ऐसा वर्णन अर्थात् ( अभूतपूर्व) उसी समय वर्णन किया जाने वाला जो (पदार्थ का) उत्कर्ष, उसके कारण लोकातिक्रान्त अर्थात् प्रसिद्ध व्यापार का अतिक्रमण करने वाला कोई ( अपूर्व ) सर्वोत्कृष्ट ( व्यापार ) जिस ( वक्रता ) का गोचर अर्थात् विषय होता है (ऐसी वक्रता है)। उस ( वक्रता) निर्माण का अर्थ है उस ( लोकोत्तर ) रूप में ( पदार्थ का ) वर्णन । तो यहाँ इसका आशय यह है कि-कविजन जिन पदार्थों के स्वरूप का वर्णन प्रस्तुत करते हैं वे उनके द्वारा अविद्यमान रहते हुए उत्पन्न नहीं किए जाते, अपितु केवल सत्तामात्र से परिस्फुरण करने वाले इन पदार्थों में वे उस प्रकार के किसी अपूर्व उत्कर्ष की सृष्टि करते हैं जिससे कि पदार्थ ( लोकोत्तर) रसिकों के हृदयों को आकर्षित करने वाली, किसी कमनीयता से युक्त हो जाते हैं । इसीलिए ऐसा कहा गया है-- ( उदाहरणसंख्या २।१०७ पर पूर्वोदृत ) लीनं वस्तुनि ॥ १० ॥ इत्यादि पद्य में। __तदेवं सत्तामात्रेणैव परिस्फुरतः पदार्थस्य कोऽप्यलौकिकः शोभातिशयविधायी विच्छित्तिविशेषोऽभिधीयते, येन नूतनच्छाया
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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