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________________ द्वितीयोन्मेषः येन श्यामं वपुरतितरां कान्तिमापत्स्यते ते बर्हेणेव स्फुरितरुचिना गोपवेषस्य विष्णोः ॥ १११ ॥ जिसके कारण चमकती हुई कान्ति वाले मयूरपिच्छ से युक्त कृष्णावतार धारण करने वाले विष्णु के ( शरीर की ) अतिशायिनी कान्ति को तुम्हारा श्यामल शरीर प्राप्त करेगा ॥ ११९ ॥ २६९ त्र 'अतितराम्' इत्यतीव चमत्कारकारि । एवमन्येषामपि सजातीयलक्षणद्वारेण लक्षणनिष्पत्तिः स्वयमनुसर्तव्या । तदेवमियमनेकाकारा वऋत्वच्छित्तिश्चतुविधपदविषया वाक्यैकदेशजीवितत्वेनापि परिस्फुरन्ती सकलवाक्यवैचित्र्यनिबन्धनतामुपयाति । यहाँ 'अतितराम्' यह पद अत्यन्त ही चमत्कार को उत्पन्न करता है । इस प्रकार समानधर्मीय लक्षणों के आधार पर अपने आप लक्षणों की सिद्धि का अनुसरण कर लेना चाहिए ( अर्थात् लक्षणों को घटित कर लेना चाहिए)। तो इस प्रकार यह चार प्रकार के पदों की विषयभूत अनेक प्रकार की वक्रताओं की शोभा वाक्य के एक भाग ( पदों ) में ही प्राण रूप से स्फुरित होती हुई भी समस्त वाक्य की विचित्रता का कारण बनती है । वक्रतायाः प्रकाराणामेकोऽपि कविकर्मणः । तद्विदाह्लादकारित्वहेतुतां प्रतिपद्यते ॥ ११२ ॥ इत्यन्तरश्लोकः । वक्रता के प्रभेदों में से एक भी प्रभेद कवि व्यापार ( काव्य ) के काव्यमर्मज्ञों को आनन्दित करने का कारण बन जाता है ।। ११२ ॥ यह अन्तरश्लोक है । यद्येवमेकस्यापि वत्रताप्रकारस्य यदेवंविधो महिमा तदेते बहवः संपतिताः सन्तः कि संपादयन्तीत्याह - यदि वक्रता के एक भी भेद का ऐसा माहात्म्य है ( कि वह काव्यतत्त्वज्ञों को आह्लादित करने लगता है ) तो ये बहुत से भेद ( एक साथ ही उपस्थित होकर ) क्या करते हैं - यह बताते हैं परस्परस्य शोभायैः बहवः पतिताः क्वचित् । प्रकारा जनयन्त्येतां चित्रच्छायामनोहराम् || ३४ ॥ कहीं-कहीं परस्पर सौन्दर्य की सृष्टि के लिये ( एक साथ ) बहुत से
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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