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________________ २५८ वक्रोक्तिजीवितम् सोक्ता कारकवता सा कारकवक्रम्वविच्छित्तिरभिहिता । कोदशी-यस्यां कारकाणां विपर्यासः साधनानां विपरिवर्तनम्, गोण. मुख्ययोरितरेतरत्वापत्तिः। कयम्-यत् कारकसामान्यं मुख्यापेक्षया करणादि तत् प्राधान्येन मुख्यभावेन प्रयुज्यते । कया युक्त्या-तत्वाध्यारोपणात् । तदिति मुख्यपरामर्शः, तस्य भावस्तत्वं तदध्यारोपणात् मुख्यभावसमर्पणात् । तदेवं मुख्यस्य का व्यवस्थेत्याह-मुख्यगुणभावाभिधानतः । मुख्यस्य यो गुणभावस्तदभिवानादमुख्यत्वेनोप. निबन्धादित्यर्थः। किमर्थम्--परिपोषयितुं कांचि भगीभणितिरम्यताम् । कांचिदपूर्वा विच्छित्युक्तिरमणीयतामुल्लासयितुम् । तदेव. मचेतनस्यापि चेतनसंभविस्वातन्त्र्यसमर्पणादमुख्यस्य करणादेवी कर्तृत्वाध्यारोपणाद्यत्र कारकविपर्यासश्चमत्कारकारी संपद्यते । यथा उसे कारक वक़ता कहा गया है अर्थात् ( कर्ता आदि ) कारकों के बांकपन से होने वाली शोभा कहा गया है । कैसी है ( वह कारक वक्रता) जिसमें कारकों की विलोमता अर्थात् साधनों का विशेष परिवर्तन रहता है अर्थात् अप्रधान एवं प्रधान की एक दूसरे से बराबरी आ जाती है । कैसेजो कारक सामान्य होता है अर्थात् प्रधान की अपेक्षा ( गौण ) कारण आदि है वह प्रधान रूप से अर्थात् मुख्यरूप से प्रयुक्त होता है । किस ढंग से (प्राधान्येन प्रयुक्त होता है) प्रधानता का अध्यारोप करने से । ( तत्त्वाध्यारोप में) तत् शब्द से मुख्य का ग्रहण होता है। तत् का भाव तत्ता हुआ उसके अध्यारोप से अर्थात् प्रधानता का प्रतिपादन करने से (गौण का प्राधान्येन प्रयोग होता है)। तो इस प्रकार प्रधान कारक की क्या व्यवस्था होती है इसे बताते हैं-मुख्य की गौणता के कथन से । अर्थात् प्रधान की जो गौणता है उसका कथन करने से गौणरूप में प्रधान का प्रयोग करने से यह अभिप्राय हुआ। (ऐसा परिवर्तन ) किस लिए ( किया जाता है)-किसी भंगी. भणिति की रम्यता को पुष्ट करने के लिए । अर्थात् विच्छित्ति द्वारा कथन की किसी अपूर्व रमणीयता की सृष्टि करने के लिए। तो इस प्रकार चेतन में सम्भव होने वाली स्वतन्त्रता को अचेतन में भी प्रतिपादित करने से अथवा गौण करणादि में कर्तृता का आरोप करने से जहाँ कारकों का परिवर्तन चमत्कार को उत्पन्न करने वाला होता है (वहाँ कारक वक्रता होती है) जैसे याच्जा दैन्यपरिग्रहप्रणयिनी नेक्ष्वाकवः शिक्षिताः सेवासंवलितः कवा रघुकुले मौलो निबद्धोऽजलिः ।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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