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________________ और १७, संकर, तथा ३ अन्य अलंकार जिनके पूर्वाचार्यों द्वारा किए गए लक्षणों का खण्डन कर अपने ढङ्ग से नये लक्षण दिये-वे हैं-१८ रसवत् १९. दीपक और २० सहोक्ति । इन अलंकारों के अतिरिक्त उन्होंने पूर्वाचार्यों द्वारा स्वीकृत निम्न १९ अलंकारों की अलंकारता का खण्डन किया है: १. प्रेयस् २. ऊर्जस्विन् ३. उदात्त ४. समाहित ५. प्रतिवस्तूपमा ६. उपोमपमा ७. तुल्ययोगिता ८. अनन्वय ९. निदर्शना १०. परिवृत्ति ११. विरोष १२. समासोक्ति १३. यथासङ्ख्य १४. श्राशीः १५ विशेषोक्ति १६. हेतु १७. सूक्ष्म १८. लेश और १९. उपमारूपक । परन्तु बड़े ही असौभाग्य का विषय है कि इन अलंकारों का विवेचन-स्थल पाण्डुलिपि में अत्यन्त भ्रष्ट और खण्डित था। जिसकी वजह से डा० डे महोदय उसे समीचीन ढंग से प्रकाशित करने में असमर्थ रहे। फिर भी उनसे द्वारा दिए गये मूल और Resume के आधार पर इन अलंकारों के जो विषय में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं उन्हें हम संक्षेप से प्रस्तुत करते हैं। हम यहाँ पर पूर्वाचार्यों द्वारा स्वीकृत इन्हीं अलंकारों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत करेंगे जिनका कि कुन्तक ने खण्डन किया है: १. रसवदलङ्कार प्राचीन प्राचार्यों द्वारा स्वीकृत रसवदलंकार को कुन्तक ने अलंकार्य कहा और उसकी अलंकारता का खण्डन दो आधारों पर किया है: १. वर्ण्यमान के स्वरूप से भिन्न किसी अन्य वस्तु का बोध होने से-तथा (२) शब्द और अर्थ की सहूति न होने से: १. प्रथम आधार के विषय में कुन्तक प्राचीन प्राचार्यों भामह, दण्डिन् तथा उद्भट के लक्षणों को प्रस्तुत कर उनमें दिखाते हैं कि इनके लक्षणों से अलंकार और अलंकार्य का विभाग किया ही नहीं जा सकता क्योंकि जो अलंकार्य है उसी को ये लोग अलंकार कहते हैं । इन तीनों प्राचार्यों की परिभाषाओं में मुख्यतः रस को ही रसवदलंकार कहा गया है। रस तो अलंकार्य है, उसे अलंकार माना ही नहीं जा सकता। क्योंकि ऐसा मानने पर अपने में ही क्रियाविरोध होगा, साथ ही यदि रस को हम अलंकार मान भी लें तो अलंकार्य किसे माने ? ऐसी कोई व्यवस्था इन प्राचार्यों के लक्षणों में नहीं है। उनके लक्षणों की इस ढा की अव्यवस्था का बड़े ही सूक्ष्म तों द्वारा कुन्तक ने प्रतिपादन किया है, उसे विस्तार के भय से यहाँ प्रस्तुत करना ठीक नहीं, उसे मूल प्रन्थ में देखें। भामह, उद्भट, दण्डी भादि के अतिरिक्त कुछ प्राचार्यों ने सम्भवतः यह सिवान्त प्रस्तुत किया था कि चेतन पदापों के वर्णन प्रसङ्ग में रसबदलहार
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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