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________________ द्वितीयोन्मेषः - २२१ पत्र मत्तत्वं निरहंकारत्वं च चेतनधर्मसामान्यमुपचरितम् । सोऽयमुपचारवक्रताप्रकारः सत्कविप्रवाहे सहस्रशः संभवतीति. सहृदयः स्वयमेवोत्प्रेक्षणीयः । अत एव च प्रत्यासन्नान्तरेजस्मन्नुपचारे न वक्रताव्यवहारः, यथा गौर्वाहीक इति । यहाँ प्राणियों का सामान्य धर्मभूत मतवालापन एवं अहङ्कारहीनता उपचरित हुई है। अर्थात अहंकार से रहित होना, एवं मदमत्त होना तो चेतन प्राणियों का ही धर्म है वह अचेतन में तो सम्भव नहीं हो सकता किन्त यहाँ मत्तता एवं निरहङ्कारता का प्रयोग क्रमशः बादलों एवं चन्द्रमा के लिए हुआ है जो कि उनमें सम्भव नहीं है। लेकिन जिस प्रकार से मतवाला मनुष्य इधर उधर भटका करता है उसी प्रकार आकाश भी इधर उधर आकाश में भ्रमण करते हैं इसीलिए केवल इधर उधर भ्रमण करने के ही साम्य को लेकर बादलों के लिए मत्त शब्द का अमुख्य रूप से उपचारतः प्रयोग हुआ है, उसी प्रकार जैसे चेतन प्राणी का रूप अथवा सम्पत्ति आदि से हीन हो जाने पर अहंकार समाप्त हो जाता है और वह निरहंकार हो जाता है उसी प्रकार चन्द्रमा भी बादलों के छाये रहने के कारण अपने प्रकाश अथवा अपनी चन्द्रिका से रहित रहता अतः इसी रूपराहित्य के साम्य के कारण ही चन्द्रमा के लिए निरहंकार शब्द का प्रयोग गौण रूप से उपचारतः उनकी प्रकाशहीनता को द्योतित करने के लिए किया गया है। अतः यहाँ उपचारवक्रता हुई। इसी उदाहरण को आनन्दवर्द्धनाचार्य ने 'अत्यन्त तिरस्कृत वाक्य ध्वनि' के वाक्यगत उदाहरण रूप में उद्धृत किया है । उसकी अभिनवगुप्तपादाचार्य ने इस प्रकार किया है इस प्रकार यह उपचार-उक्रता का भेद श्रेष्ठकवियों की प्रवृत्ति के अन्तर्गत ( अर्थात् उनके काव्यों में ) हजारों तरह का सम्भव हो सकता है अतः सहृदयों को स्वयं ही उसका विचार कर लेना चाहिए। (क्योंकि उसे चारछः उदाहरणों द्वारा नहीं बताया जा सकता)। इदम परमुपचारवतायाः स्वरूपम्-यन्मूला सरसोल्लेखा रूपकादिरलंकृतिः। या मूलं यस्याः सा तथोक्ता। रूपकमादिर्यस्याः सा तथोक्ता। का सा--प्रलंकृतिरलंकरणं रूपकप्रभृतिरलंकारविच्छित्तिरित्यर्थः। कोदशी-सरसोल्लेखा। सरसः सास्वादः सचमत्कृतिकल्लेखः समुन्मेषो यस्याः सा तथोक्ता। समानाधिकरणयोरत्र हेतुहेतुमद्धावः, यथा
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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