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________________ द्वितीयोन्मेष तरह की विचित्रता अर्थात् विचित्र होने के नाते आने वाली वक्रता यावे बाँकपन को यह संज्ञा देते हैं। इस तरह इसका यह आशय है—जो केवल साधारण तत्त्व का ही परामर्श करने वाले शब्द हैं उनका अनुमान को तरह एक नियतवैशिष्टय का ग्रहण करना यद्यपि स्वभावतः तनिक भी सम्भव नहीं है फिर भी इस तर्क से उन शब्दों को कवि के द्वारा आकूत एक नियत वैशिष्ट्य में निहित कर दिये जाने पर ( उनमें ) एक लोकोत्तर चमत्कार उत्पन्न करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। जैसे ताला जाअंति गुणा जाला दे सहि एहि घेप्पंति । रइकिरणाणुग्गहिनाइ होति कमलाइ जमलाइ ॥ २६ ॥ (तदा जायन्ते गुणा यदा ते सहृदयाहन्ते ।। रविकिरणानुगृहीतानि भवन्ति कमलानि कमलानि ।।) गुण तभी गुण होते हैं जब काव्य-मर्मज्ञ सहृदय उनको ग्रहण करते हैं अर्थात् सहृदय उनका आदर करते हैं (जैसे कि ) सूर्य की किरणों से अनुगृहीत अर्थात् उनके कृपाभाजन कमल ही वस्तुत: कमल होते हैं ।।२६॥ प्रतीयते इति क्रियापचिम्यस्यायमाभप्रायो यदेवंविधे विक्ये शम्दानां वाचकत्वेन न व्यापारः, अपितु वस्वन्तरवत्प्रतीतिकारित्वमात्रेणेति युक्तियुक्तमप्येतदिह नाति प्रसन्यते। यस्माद् ध्वनिकारेण व्यङ्गयव्यजकभावोऽत्र सुतरां सथितस्तत् किं पौनरुक्त्येन । कारिका में प्रयुक्त 'प्रतीयते' इव क्रियापद की विचित्रता का आशय यह है कि इस प्रकार के विषय में शब्दों का वाचक रूप से ( ही ) व्यापार नहीं होता है अर्थात् उस अर्थ को प्रकट करने में शब्द की अभिधा शक्ति असमर्थ होती है, अपितु दूसरी वस्तु की सी अर्थात् कविक्विक्षितनियतविशेष की प्रतीति कराने के द्वारा ही उनका व्यापार प्रवृत्त होता है यहाँ पर इसके युक्तियुक्त होते हुए भी इसे हम विस्तार नहीं दे रहे हैं क्योंकि ध्वनिकार ने ऐसे स्थलों पर व्यङ्गय व्यञ्जक भाव का भली भांति समर्थन कर रखा है तो उसको दुहराने से क्या लाभ । सा च रूढिवैचिश्यवक्रता मुख्यतया द्विप्रकारा संभवति--यत्र रूढिवाच्योऽर्थः स्वयमेव मात्मन्युत्कर्ष निकषं वा समारोपयितुकामः कविनोपनिबध्यते, तस्यान्यो वा कश्चितक्तेति । यथा तथा वह 'कडिवैचिवकता' प्रधान ढंग से दो तरह की सम्भव होती है-(१) वहाँ कवि, सहि ( प्रबाव बन्द ) के द्वारा मान्य अर्थ को, स्वयं
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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