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________________ ( ३० ) भाव आदि समास, तद्धित, एवं सुब्धातु वृत्तियों की अपने सजातियों की अपेक्षा विशिष्ट रमणीयता समुल्लसित होती है, वहाँ वृत्तिवैचित्र्यवक्रता होती है । (ज) भाववैचित्र्यवक्रता-भाव की वक्रता से आशय धात्वर्थ अर्थात् क्रिया की वक्रता से है जहाँ कविजन यह समझ कर कि यदि भाव को साध्यरूप में कहा जायगा तो प्रस्तुत पदार्थ को भलीभाँति पुष्टि नहीं होगी; उसकी साध्यता की अवज्ञा करके उसे सिद्ध रूप से प्रस्तुत करते हैं वहाँ भाववैचित्र्यवक्रता होती है। (झ) लिङ्गवैचित्र्यवक्रता-जहाँ पर पुंलिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग के विशिष्ट प्रयोगों के कारण काव्य में रमणीयता आती है वहाँ लिङ्गवैचित्र्यवक्रता होती है। (१) जहाँ पर कवि द्वारा विभिन्न स्वरूप वाले लिङ्गों के सामानाधिकरण्य रूप में प्रस्तुत किए जाने पर किसी अपूर्व सौन्दर्य की सृष्टि हो जाती है वहाँ प्रथम प्रकार की लिङ्गवक्रता होती है। (२) जहाँ पर अन्य लिङ्गों के सम्भव होने पर भी कवि लोग काव्यसौन्दर्य को प्रस्तुत करने के लिए यह सोचकर कि 'स्त्री, यह नाम ही मनोहर है', केवल स्त्रीलिङ्ग का ही प्रयोग करते हैं, वहाँ दूसरे प्रकार को लिगवकता होती है । ऐसा करने से उन्हें शृङ्गारादि रसों की परिपुष्टि कराना बहुत ही आसान हो जाता है क्योंकि स्त्रीलिङ्ग के प्रयोग के कारण दूसरी विच्छित्ति से नायकनायिका आदि के व्यवहार की प्रतीति होने से रसादि को परिपुष्टि अधिक रमणीय ढंग से हो जाती है। (३) तीसरे प्रकार की लिङ्गवैचित्र्यवक्रता वहाँ होती है, जहाँ कविजन वर्ण्यमान पदार्थ के भौचित्य के अनुरूप, तीनों लिङ्गों के सम्भव होने पर भी किसी विशिष्ट लिङ्ग को उपनिबद्ध करके सौन्दर्यातिशय को प्रस्तुत करते हैं। . ३. क्रियावैचित्र्यवक्रता. अभी तक कुन्तक द्वारा प्रतिपादित पदपूर्वार्द्धगत प्रतिपादक की वक्रताओं का विवेचन प्रस्तुत किया गया। अब धातु की वक्रता का विवेचन करना है । चूंकि धातु की वक्रता का मूल क्रिया की विचित्रता है अतः कुन्तक ने इसका नाम कियाचित्र्यवकता रखा और यही प्रतिपादित किया कि क्रियावैचित्र्य के कितने प्रकार हो सकते हैं "तस्य च (अर्थात् धातुरूपस्य पूर्वभागस्य च ) बियावैचित्र्यनिबन्धनमेव वक्रत्वं विद्यते । तस्मात् क्रियावैचित्र्यस्यैव कीदृशाः कियन्तश्च प्रकाराः सम्भवन्तीति तत्स्वरूपनिरूपणार्थमाह ।" (पृ. २४५ )
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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