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________________ वक्रोक्तिजीवितम् अत्रारोचकिनः केचिच्छायावैचित्र्यरञ्जके । विदग्धनेपथ्यविधौ भुजङ्गा इव सादराः ॥ ५२ ॥ यहाँ शोभा के वैचित्र्य के कारण मनोहर ( इस मध्यम मार्ग ) में सम्य वेशभूषा के विधान में नागरिकों के समान कुछ रमणीय वस्तु के व्यसनी ( अरोचकी कवि एवं सहृदय ) आदरयुक्त होते हैं। ( अर्थात् कवि लोग इसका बाषयण कर काव्यरचना करते हैं और सहृदय इसका अध्ययन कर अलौकिक बानन्द प्राप्त करते हैं ।। ५२ ।। मार्गोऽसौ मध्यमो नाम मध्यमाभिधानोऽसौ पन्थाः । कीदृशःनानाविधा रुचयः प्रतिभासा येषां ते तथोक्तास्तेषां सुकुमारविचित्रमध्यमव्यसनिनां सर्वेषामेव मनोहरो हृदयहारी । यस्मिन् स्पर्धया मार्गद्वितय. सम्पदः सुकुमारविचित्रशोभाः साम्येन वर्तन्ते व्यवतिष्ठन्ते, न न्यूनातिरिक्तत्वेन | यत्र वैचित्र्यं विचित्रत्वं सौकुमार्य सुकुमारत्वं सङ्कीर्णतां गते तस्मिन् मिश्रतां प्राप्ते सती भ्राजेते शोभेते। कीडशे-सहजाहार्य शोभातिशयशालिनी, शक्तिव्युत्पत्तिसम्भवो यः शोभातिशयः कान्त्यु.. त्कर्षस्तेन शालेते श्लाघेते ये ते तथोक्ते । यह मध्यम नाम का मार्ग अर्थात् 'मध्यम' इस संज्ञा से प्रकट किया जाने वाला यह ( काव्य का ) पथ है। किस प्रकार का-नाना प्रकार की रुचियाँ अर्थात् प्रतीतियां हैं जिनके वे हये तथोक्त ( नानाविध रुचि वाले ) उनका अर्थात् सुकुमार, विचित्र, एवं मध्यम मार्ग के व्यसनी सभी का ही मनोहर अर्थात् हृदय को हरण करने वाला । (सब को आनन्दित करने वाला मध्यम नामक मार्ग है)। जिस ( मार्ग ) में (परस्पर ) स्पर्धा से दोनों मार्गों की सम्पत्तियां अर्थात् सुकुमार एव विचित्र ( मार्गों ) की छवियाँ समान रूप से वर्तमान रहती हैं, न्यूनाधिक्य रूप से नहीं विद्यमान रहती हैं। जहां वैचित्र्य अर्थात् विचित्रभाव सौकुमार्य अर्थात् सुकुमार भाव सकीर्णता को प्राप्त होकर अर्थात् उस ( मध्यम मार्ग) में मिश्रित होकर प्रापमान अर्थात शोभायमान होते हैं। कैसी ( दोनों मार्ग की छवियाँ)सहज एवं माहार्य शोभा के अतिशय से श्लाघनीय, अर्थात् शक्ति ( सहज) एवं मुत्पत्ति से उत्पन्न होने वाला (माहायं ) जो शोभा का बतिशय अर्थात् शान्ति का उत्त है उससे वो सालित अर्थात् प्रशंसित होती हैं वे दोनों हुई तमोक्त (सहण एवं माहार्य शोमा के अतिशय से श्लाघनीय शोभायें जिस कार्य में चमत्कार उत्पन्न करती है।)
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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