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________________ ( २५ ) तृतीय और चतुर्थ उन्मेषों में किया है। द्वितीय उन्मेष में उन्होंने वर्णविन्यासवक्रता, पदपूर्वार्द्धवक्रता तथा प्रत्ययाश्रयवक्रता का, तृतीय उन्मेष में वस्तुपासा और वाक्यवकता का तथा अन्तिम चतुर्थ उन्मेष में प्रकरणवक्रता और प्रथम वक्रता का विशेष विश्लेषण प्रस्तुत किया है। प्रबन्धवक्रता का विवेचन पूर्ण नहीं हो पाता है कि प्रन्थ परिसमाप्त हो जाता है। इसीलिए यह अनुमान है कि प्रन्थ लगभग परिपूर्ण ही है क्योंकि प्रवन्धवक्रता का ही विश्लेषण आखिरी है । लगभग उसके ६ प्रभेदों की व्याख्या कुन्तक प्रस्तुत करते हैं। पाण्डुलिपि में प्राप्त होनेवाली अन्तिम कारिका नूतनोपायनिष्पन्ननयवर्मोपदेशिनाम् । महाकविप्रबन्धानां सर्वेषामस्ति वक्रता ॥ से यह भाशय स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्रबन्धवक्रता के सभी प्रकारों का विवेचन वे समाप्त कर चुके हैं। अस्तु, हम संक्षेप से इन वक्रता के छहों प्रकार का सम्पूर्ण ग्रन्थ के आधार पर विवेचन प्रस्तुत करते हैं।' १. वर्णविन्यासवक्रता जहाँ पर वर्णों अर्थात् अक्षरों को उनके सामान्य प्रयोग करने के ढङ्ग से भिन्न रमणीय ढा द्वारा विन्यस्त किया जाता है जिसके कारण उनका वह विन्यास सहृदयों को श्राह्लादित करने में समर्थ हो जाता है, वहाँ वर्णविम्यास. वक्रता होती है । इस वर्णविन्यासवकता के कारण शब्द का सौन्दर्य उत्कर्षयुक्त हो जाता है । यह एक, दो अथवा बहुत से व्यंजनों को बार-बार श्रावृत्ति से पाती है। यह प्रावृत्ति कभी व्यवधान से कभी अव्यवधान से होती है। कभी अनियन स्थान वाली होकर तथा कभी नियत स्थान वाली होकर ( यमक. रूप में ) सौन्दर्य प्रदान करती है । कुन्तक ने इस वक्रता को इस ढा से प्रस्तुत किया है कि इसमें अन्य प्राचार्यों के सभी अनुप्रासप्रकार और यमकप्रकार अन्तर्भूत हो जाते हैं। इस वक्रता का प्राण औचित्य है। वर्ण्यमान के औचित्य से च्युत होने पर यह वक्रता नहीं मानी जायगी। इसीलिए उन्होंने व्यसनितापूर्वक निबद्ध किए जाने वाले वर्णविन्यास का निषेध किया है 'नात्तिनिर्बन्धविहिता नाप्यपेशलभूषिता । पूर्वावृत्तपरित्यागनूतनावर्तनोज्ज्वला ॥ (२४) वही यमक वर्णविन्यासवक्रता को प्रस्तुत कर सकेगा जो प्रसादगुण सम्पन्न हो, . श्रुतिपेशल हो और औचित्ययुक्त हो।
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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