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________________ १२४ वक्रोक्तिजीवितम् धारापथेनेव सुभटानां मनोरथाः । नित्रिंशधारामार्गेण यथा सुभटानां महावीराणां मनोरथाः सङ्कल्पविशेषाः । तदयमत्राभिप्रायः - यदसि धारामार्गगमने मनोरथानामौचित्यानुसारेण यथारुचि प्रवर्तमानानां मनाङमात्रमपि म्लानता न सम्भाव्यते । साक्षात्समरसंमर्दसमाचरणे पुनः कदाचित् किमपि म्लानत्वमपि सम्भाव्येत । तदनेन मार्गस्य दुर्गमत्वं तत्प्रस्थितानां च विहरणप्रौढिः प्रतिपाद्यते । · ( वह विचित्र नाम का मार्ग कैसा है- अतिदुःसञ्चर अर्थात् जहाँ बड़े कष्ट के साथ गमन किया जाता है। अधिक कहने से क्या लाभ, जिस ( मार्ग ) से विदग्ध कविजन अर्थात् | केवल कुछ ही व्युत्पन्न ( कवि ) लोग गये हैं इसका भाव यह है कि उस ( विचित्र मार्ग ) का आश्रयण कर काव्यरचना किए है । किस प्रकार से – खड्गधारा के मार्ग से सुभटों के मनोरथ के समान । तलवार की धारा के मार्ग से जैसे सुभटों अर्थात् बड़े-बड़े वीरों के मनोरथ अर्थात् संकल्पविशेष प्रयाण : करते हैं ) । तो यहाँ इसका अभिप्राय यह है कि अपनी रुचि के अनुकूल औचित्य के अनुसार खड्ग की धारा के मार्ग से चलने में प्रवृत्त हुए मनोरथों की थोड़ी भी म्लानता सम्भव नहीं है, चाहे साक्षात् संग्राम की भीड़ में आचरण करने पर शायद कभी कुछ लानता भी सम्भव हो जाय ( लेकिन तलवार की धारा के मार्ग पर चलने पर म्लानता कदापि सम्भव नहीं है) । तो इस प्रकार मार्ग की दुर्गमता तथा उस ( मार्ग ) से प्रस्थान करने वालों की विचरण की परिपक्वता का ( प्रौढ़ि का ) प्रतिपादन किया गया है । कीदृक् स मार्ग : - यत्र यस्मिन् शब्दाभिधेययोरभिधानाभिधीयमानयोरन्तः स्वरूपानुप्रवेशिनी वक्रता भणितिविच्छित्तिः स्फुरतीव स्पन्दमानेव विभाव्यते । लक्ष्यते । कदा-प्रतिभाप्रथमोभेदसमये । प्रतिभायाः कविशक्तेरचर मोल्लेखावसरे । तदयमत्र परमार्थः यत् कवि प्रयत्न निरपेक्षयोरेव शब्दार्थयोः स्वाभाविकः कोऽपि वक्रताप्रकारः परिस्फुरन् परिदृश्यते । यथा ---- वह विचित्र मार्ग है कैसा -- जहाँ अर्थात् जिस मार्ग में शब्द एवम् अभिधेय अर्थात् वाचक और वाच्य ( अर्थ ) के भीतर अर्थात् स्वरूप में प्रवेश किये हुए वक्रता अर्थात् कथन को विच्छित्ति स्फुरित होती हुई-सी अर्थात् प्रवाहित होती हुई-सी विभावित अर्थात् लक्षित होती है । कबप्रतिभा के प्रथम उभेद के समय में । प्रतिमा अर्थात् कवि की शक्ति के आदिम उल्लेख के अवसर पर तो इसका वास्तविक अर्थ यह हुआ कि -
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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