SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वक्रोक्तिजीवितम् षट्पदाः । उत्फुल्लानि विकसितानि कुसुमानि पुष्पाणि यस्मिन् कानने बने तेन षट्पदा इव भ्रमरा यथा। विकसितकुसुमकाननसाम्येन तस्य कुसुमसौकुमार्यसहशमाभिजात्यं द्योत्यते । तेषां च भ्रमरसादृश्येन कुसुममकरन्दकल्पसारसंग्रहव्यसनिता। स च कीदृशः-यत्र यस्मिन् किचनापि कियम्मात्रमपि वैचित्र्यं विचित्रमावो वक्रोक्तियुक्तत्वम् तत्सर्वमलंकारादिप्रतिभोद्भवं कविशक्तिसमुल्लसितमेव, न पुनराहार्य यथाकथंचित्प्रयत्नेन निष्पाद्यम् । कीदृशम् -सौकुमार्यपरिस्पन्दस्यन्दि । सौकुमार्यमामिजात्यं तस्य परिस्पन्दस्तद्विदाह्रादकारित्वलक्षणं रामणीयकं तेन स्यन्दते रसमयं संपद्यते यत्तथोक्तम् । यत्र विराजते शोभातिशयं पुष्णातीति सम्बन्धः । यथा सुकुमार नाम का वह यह अर्थात् पूर्व-कथित लक्षण वाला एवं सुकुमार शब्द के द्वारा कहा जाने वाला ( यह मार्ग है ) जिस मार्ग से कालिदास आदि श्रेष्ठ कवि गये हैं अर्यात् उस मार्ग का माश्रय ग्रहण कर काव्यों का निर्माण किये हैं। किस ढङ्ग से-खिले हुए फूलों से युक्त जङ्गल से भौरों की तरह। उत्फुल्ल अर्थात् खिले हए कुसुम अर्थात फूल हैं जिस कानन अर्थात् बङ्गाल में, उस (जङ्गल) से षट्पदों के समान अर्थात भौरे की तरह (तात्पर्य यह है कि जैसे खिले हुए फूलों से युक्त जन से भोरे बड़े ही आनन्द के साथ सरलता पूर्वक भ्रमण करते हैं, उसी प्रकार श्रेष्ठ कवि सुकुमार मान का आश्रयण कर काव्य-रचना करते हैं विकसित फूलों से युक्त वन के साथ सादृश्य के द्वारा उस ( सुकुमार मार्ग ) की पुष्पों की सुकुकारता के समान रमणीयता चोतित होती है, तथा उन ( श्रेष्ठ कवियों ) की भंवरों के साथ समानता के द्वारा पुष्पों के मकरन्द ( पुष्प-रस ) के सदृश ( सरस ) तत्त्व के संग्रह का व्यसन ( प्रतिपादित किया गया है)। और वह ( सुकुमारमार्ग ) है कैसा? जहाँ अर्थात् जिस ( मार्ग ) में कुछ भी अर्थात् कितना भी वैचित्र्य विचित्रता अर्थात् वक्रोक्ति का संयोग ( होता ) है। वह सब अलङ्कार इत्यादि (वैचित्र्य ) प्रतिभाजन्य अर्थात् केवल कवि की शक्ति से ही समुल्लसित होता है, जैसे कैसे भी प्रयत्न द्वारा सम्पादित किया गया आहायं ( अर्थात् बनावटी) नहीं होता ( वह कवि की स्वाभाविक शक्ति से ही निष्पन्न होता है वह वैचित्र्य पुनः होता ) कैसा है ? सौकुमार्य के परिस्पन्द से प्रवाहित होने वाला । सौकुमार्य अर्थात् आभिजात्य (रमणीयता) उसका परिस्पन्द अर्थात् सहृदयों को आह्लादित करने वाला सौन्दर्य उससे बो प्रवाहित होता है अर्थात् रसमय हो जाता है वैसा (वैचित्र्य ) हुमा
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy