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________________ प्रथमोन्मेषः देता है ? विश्राम करते हुए अर्थात् शीघ्रता करने में असमर्थ भी (प्रोषित समूह को स्वरायुक्त कर देता है । ) 'वृन्दानि' इस पद से बाहुल्य सूचना . द्वारा उस कार्य को करने के आभ्यास को द्योतित करता है। किस प्रकार से-मन्द्र एवं स्निग्ध ध्वनियों के द्वारा अर्थात् चतुर दूत के प्ररोचना वचनों के सदृश माधुर्ययुक्त रमणीय शब्दों के द्वारा ( पथिकों को त्वरायुक्त कर देता है ) यह अभिप्राय हुआ । कहाँ ( ऐसा करता है ) पथि अर्थात् मार्ग में । ( अर्थात् जब मैं ) अपनी इच्छा से ही जैसे-तैसे इस प्रकार का आचरण करता हूँ तो फिर ( भला अपने ) मित्र के प्रेम के लिए प्रयत्नपूर्वक समाहितचित्त क्यों न बनूं यह ( अर्थ द्योतित होता है ) । ___ कीदृशानि वृन्दानि-अबलावेणिमोक्षोत्सुकानि | अबला-शब्देनात्र तत्प्रेयसीविरहवैधुर्यासहत्वं भण्यते, तद्वेणिमोक्षोत्सुकानीति तेषां तदनुरक्तचित्तवृत्तित्वम् । तदयमत्र वाक्यार्थः-विधिविहितविरहवैधुर्यस्य परस्परानुरक्तचित्तवृत्तर्यस्य कस्यचित्कामिजनस्य समागमसौल्यसंपादनसौहार्दे सदैव गृहीतव्रतोऽस्मीति । अत्र यः पदार्थपरिस्पन्दः कविनोपनिबद्धः प्रबन्धस्य मेघदूतत्वे परमार्थतः स एव जीवितमिति सुतरां सहृदयहृदयाह्लादकारी । न पुनरेवंविधो यथा किस प्रकार के समूहों को ( संजात त्वरा कर देता हूँ, जो) अवलाओं की वेणियों को खोलने के लिए उत्सुक ( रहते हैं ) ( अर्थात् विरहिणियों के पति जब परदेश में रहते हैं तो वे शृङ्गार नहीं करती हैं अतः उनकी चोटियाँ बंधी रहती हैं, किन्तु जब पति परदेश से वापस आते हैं तो वे पुनः शृङ्गार करने के लिए अपनी चोटियों को खोलती हैं इसलिए परदेशियों के समूहों के उनकी चोटी खोलने के लिए उत्सुक बताया गया है)। 'अबला' शब्द के द्वारा यहाँ उन (परदेशियों) की प्रियतमाओं की (प्रियतम के ) विरह की विधुरता को सह सकने में असमर्थता बताते हैं ! 'उनकी चोटियों को खोलने के लिए उत्सुक' इस पद के द्वारा उन (परदेशियों) की उन (अपनी प्रियतमाओं) में अनुरक्त चित्तवृत्तिता को (द्योतित करते हैं ) । तो इसका वाक्यार्थ यह है कि-दैवजनित विरह की विधुरता से युक्त; परस्पर अनुरक्त चितवृत्ति वाले जिस किसी कामी जन के समागम से उत्पन्न सुख के सम्पादनरूप सौहार्द (मैं ) सदेव गृहीतवत हूँ। ( अर्थात् विरहीजनों का समागम कराने का मैंने व्रत ही ले लिया है। (इस प्रकार ) यहाँ (इस श्लोक में ) कवि ने जिस पदार्थ ( मेघ ) के स्वभाव का वर्णन प्रस्तुत .
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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