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________________ प्रथमोन्मेषः उसे प्रस्तुत किया है उसका कारण है कि ) परम कारुणिक जिन (मुनि वाल्मीकि ) का निषाद के द्वारा मारे गये पक्षी (क्रौञ्च ) के देखने मात्र से उत्पन्न हुआ शोक ( मा निषाद-इत्यादि ) श्लोक के रूप में परिणित हो गया था, उन्हीं ( परम कारुणिक मुनि ) के उस ( गर्भवती पति द्वारा निर्वासित एवं बन में परित्यक्त ) अवस्था वाली विदेहराज की पुत्री (सीता) के दर्शन से विवश वृत्तिवाले अन्तःकरण का व्यापार करुण रस के परिपोषण में अङ्गरूप से ( उपस्थित होकर ) सहृदयों के हृदयों को आह्लादित करेगा ( यह ) कवि ( कालिदास ) को अभीष्ट था ( इसीलिए महाकवि ने केवल 'वाल्मीकि न कहकर उक्त विशेषणों द्वारा उनका परिचय कराया था जिससे करुण रस भलीभाँति पुष्ट हो सके )। और ( तीसरा उदाहरण ) जैसे भर्तुमित्रं प्रियमविधवे विद्धि मामम्बुवाई तत्संदेशाद्धृदयनिहितादागतं त्वत्समीपम् । यो वृन्दानि त्वरयति पथि श्राम्यतां प्रोषितानां मन्द्रस्निग्धैर्ध्वनिभिरबलावेणिमोक्षोत्सुकानि ॥ ३२॥ . ( महाकवि कालिदास मेघदूत (पू० मे०।५६ ) में उस समय का वर्णन प्रस्तुत करते हैं जब शापग्रदत अपनी प्रियतमा से बहुत दूर रहने वाले यक्ष का उसकी प्राणप्रिया यक्षिणी के पास सन्देश लेकर मेघ पहुँचता है तो मेध ही कहता है कि-) अविधवे (हे सुहागिन ) ! मुझ जल को वहन करने वाले ( मेघ ) को अपने पति का मित्र समझो ( जो) हृदय में निहित उसके सन्देश ( को तुमसे कहने के निमित्त ) से तुम्हारे पास आया है। (और ) जो मार्ग में (चलते-चलते थक जाने के कारण) विश्राम करते हुए परदेशियों के ( अपनी प्रियतमा ) अबलाओं की चोटियों को खोलने के लिए उत्सुक समूहों को ( अपनी ) गम्भीर एवं स्निग्ध ध्वनियों के द्वारा त्वरायुक्त ( जल्दी जाने के लिए बाध्य ) कर देता है ॥ ३२ ।। ___ अत्र प्रथममामन्त्रणपदार्थस्तदाश्वासकारिपरिस्पन्दनिवन्धनः । भर्तुमित्रं मां विद्धीत्युपादेयत्वमात्मनः प्रथयति । तच्च न सामान्यम् , प्रियमिति विश्रम्मकथापात्रताम् । इति तामावास्योन्मुखीकृत्य च तत्संदेशात्त्वत्समीपमागमनमिति प्रकृतं प्रस्तौति । हृदयनिहितादिति स्वहृदयानिहितं सावधानत्वं द्योत्यते । ननु चान्यः कश्चिदेवंविध.
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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