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________________ वक्रोक्तिजीवितम् एक ही वाचकता को द्योतित करते हैं । तथा 'घटाबन्ध' शब्द प्रस्तुत ( अम्बिका केसरी) के महत्त्व का प्रतिपादन करने के लिए गृहीत होकर उस ( महत्त्वप्रतीति) की कारणता को प्राप्त करता है । फिर विशेष अभिधान के इच्छुक पदार्थों के स्वरूप की, उस ( विशेष अभिधान ) का प्रतिपादन करने वाले विशेषण के अभाव में, शोभा की हानि होती है । जैसे तंत्रानुल्लिखिताख्यमेव निखिलं निर्माणमेतद्विधेरुत्कर्षप्रतियोगि कल्पनमपि न्यक्कार कोटिः परा । याताः प्राणभृता मनोरथगतीरुल्लङ्घय यत्संपदस्तस्यामासमणीकृताश्मसु मणेरश्मत्वमेवोचितम् ॥ २६ ॥ जिस ( चिन्तामणि ) के होने पर ब्रह्मा की सारी सृष्टि नामोल्लेख करने योग्य नहीं रह जाती, ( एव जिसके ) उत्कर्ष के ( सदृश उत्कर्षवाले किसी अन्य पदार्थरूप ) प्रतियोगी की कल्पना करना भी ( उसके ) अपमान की पराकाष्ठा है, तथा जिसकी सम्पत्ति प्राणधारियों के मनोरथों की गति को भी पार कर गई है ( अर्थात् जिसकी सम्पत्ति मनोरथ के लिए भी अगोचर ) उस ( चिन्तामणि ) के आभास से ( मणि न होते हुए भी ) मणिरूप हो जाने वाले पत्थर के टुकड़ों के बीच पत्थर का टुकड़ा ही बना रहना उचित है । अर्थात् यदि अन्य साधारण मणियों में ही चिन्तामणि की भी गणना की जाती है तो अच्छा होगा कि उसे पत्थर ही कहा जाय, मणि नहीं, क्योंकि उससे उसका अपमान होता है ॥ २६ ॥ अत्र 'आभास' - शब्दः स्वयमेव मात्रादिविशिष्टत्वमभिलषैल्लक्ष्यते । पाठान्तरम् -' छाया मात्रमणीकृताश्मसु मणेस्तस्याश्मतैवोचिता' इति । एतच्च वाचकवक्रता प्रकारस्वरूपनिरूपणावसरे प्रतिपदं प्रकटीभविष्यतीत्यलमतिप्रसङ्गेन । यहाँ आभास शब्द स्वयं ही मात्र आदि विशेषणों के द्वारा ( आभास - मात्र ) इस प्रकार की विशिष्टता की इच्छा करता हुआ दिखाई पड़ता है । ..अतः इसके स्थान पर दूसरा पाठ - छायामात्र मणीकृताश्ममु मणेस्तस्याश्मर्तपोषिता - अर्थात् छायामात्र से पत्थर को मणि बना देनेवाले उस चिन्तामणि का पत्थर होना ही उचित है । ( अत्यधिक चमत्कारपूर्ण होगा ) । यह सब शब्दवत्रता के प्रकारों के स्वरूप का निरूपण करते समय पद-पद पर
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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