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________________ * तारण-वाणी सहित हैं व कर्मों के क्षय में उद्यमी हैं। मध्यम पात्र उनको कहा जो विशेष शास्त्रों के ज्ञाता सम्यग्दृष्टि साधु या श्रावक है । जघन्य पात्र उनको कहा है जो सम्यग्दर्शन के लिये उगमी होकर मतिज्ञान की निर्मलता से शास्त्रावलोकन करते हैं व शास्त्र की सहायता से भेदज्ञान की प्राप्ति करके सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं। निश्चय चारों दान का स्पष्टीकरण-अपने भीतर शुद्धात्मा का ज्ञान प्रगट करना, स्वसंवेदनज्ञान-रूप हो जाना ज्ञानदान है । - -स्वात्मानुभव करते हुये स्वात्मानन्द का लाभ करके अपने को तृप्त करना. आनंदामृत का रस पिलाना यह आहार-दान है। ३-सर्व बाधा या चिंता से रहित होकर निराकुलना औषधिदान है। ४-सर्व भयों का त्याग कर आत्मा के स्वभाव में निःशङ्क होकर रमण करने से अपने को अभय कर देना सो ही अभय-दान है। व्यवहार में पात्रों को आहारादि चार दान करने से पुण्य बन्ध होता है। निश्चयदान से म्वानुभव का भाव बढ़ता है जिससे वीतरागता की जागृति होकर पूर्व-बद्ध कर्मों की निर्जरा होती है और नवीन कर्मों का संवर होता है। फल यह होता है कि इस दान के प्रभाव से वह पात्र (अपना आत्मा) सिद्ध परमात्मा हो जाता है । १३ व्यवहार दान करते हुये निश्चयमान अवश्य करना चाहिये । "शीनालप्रसाद" शून्यभाव की सिद्धि-बारह भावनाओं के चिन्तवन से, सानंद वीतराग निर्विकल्प समाधि की साधना से, प्रात्म-ज्ञान से, अध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन, मनन, चितवन से. आकिञ्चन्यः धर्म की स्थिरता से, ब्रह्मचर्य की प्रवृत्ति से, दर्शन-विशुद्धि भावना से, संसार शरीर भोगों के वैराग्य से, तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान--श्रद्धान से, तथा चार आराधनाओं से होती है । मब का सार यही कि सम्यक्त की प्राप्ति से ही होती है । " जीवनमुक्त-भावमोक्ष-शून्यभाव-विंदस्वभाव अथवा उदासीनता, अणुव्रत, महाव्रत-यथाख्यातचारित्र यह सब ही कार्य कारण एक मान शून्य-भाव की सिद्धि के हैं।" __“शून्यभाव की बाधक कथायें व साधक वैराग्य भावना हैं" अतएव हमें अपने ज्ञान पुरुषार्थ से कषायों को दिन-प्रतिदिन कम करते हुए वैराग्य भावनाओं की वृद्धि करना चाहिए। . __ "दातृ-पात्र फूलना" इसमें दातार और पात्र का तथा चार प्रकार के दान का बहुत ही मनन योग्य गम्भीर कथन है । हे भव्य जीवो ! यदि भव-भ्रमण से छुट्टी पाना है तो उत्तम-पात्र व दातार होकर अपने को, अपने से, अपने लिए, प्रात्मानुभव का पवित्र दान करो। "उत्पन्न छन्द गाथा" इस गाथावली में सम्यग्दर्शन की मनन योग्य स्तुति की गई है। सम्यग्दर्शन का माहाल्य बताया गया है।"
SR No.009703
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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