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________________ १४] तारण-वाणी * क्रियायें करना जो कि घर में बालक के जन्म समय होती हैं। यहां तक कि सोंठ, पीपलामूर, अजवान व चरुआ की साज के सब दस्तूर व कायदे पूरे किये जाते हैं— कैसी बुद्धि ? कि कहाँ तो भगवान् शरीर रहित होकर मोक्ष में विराजमान हैं और कहाँ हम इस इस तरह की कल्पनायें करें, क्या इसमें दोष नहीं लगता होगा ? यह ठीक है कि धर्म प्रभावना में पुण्य-बंध माना जाता परन्तु उसमें भी तो विवेक होना चाहिए, तभी पुण्यबंध होता है । है पात्र गर्भ गाथा ' पात्र गर्भ गाथा" इसमें श्री तारण स्वामी कहते हैं कि भो भव्यो ! भगवान का गर्भ कल्याणक नहीं अपनी आत्मा का सच्चा और सारभूत गर्भ कल्याणक करके दिखाओ - कहते हैं"जब जिन गर्भवास अवतरियो, ऊर्ध ध्यानमन लायो । दर्शन, न्यान, चरन, तव, धरियो, सिद्धि मुक्त फल पायो ॥ अर्थ - हे भव्यो ! तुम्हारी आत्मा जो कि अनादिकाल से बहिरात्मा बन कर चतुर्गतिचौरासी लाख योनियों के दुःख भोग रहा है। जिस दिन तुम बहिरात्म भावों को छोड़कर अन्तरात्मा बन जाओ समझो कि उस दिन तुमने सच्चा और सारभूत वह गर्भकल्याणक महोत्सव कर लिया कि जो तुम्हें नियम से मोक्ष पहुँचा देगा । क्योंकि जिस दिन तुम्हारी आत्मा के गर्भ में 'जिन' अर्थात् अन्तरात्मा श्रा जायगा तब स्वभावत: तुम्हारे सब भाव ऊर्ध ध्यान वाले हो जायेंगे और तुम सम्यक् - दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप को धारण करने वाले बन जाओगे कि जिसके फलस्वरूप तुम्हें मोक्ष की सिद्धि हो जायगी । अतः यह गर्भकल्याणक करके पाई हुई मनुष्य पर्याय को सार्थक करो ! तुम्हारी यह की हुई धर्म-प्रभावना तुम्हारी आत्मा को मोक्ष पहुँचाने वाली होने के साथ-साथ लाखों जीवों के लिये कल्याण का निमित्त बनेगी । इसी तरह की समस्त भावनायें श्री तारण स्वामी ने इस पात्र गर्भ गाथा में दर्शाई हैं कि अपने भीतर आत्मा में 'जिनगर्भ कल्याणक' करने का पुरुषार्थ करो । अर्थात् सम्यक्ती बनो । सम्यक्ती होने का नाम ही 'जिन' है, भगवान् अरहंत देव का नाम तो जिनवर या जिनेन्द्र है । यहीं से तो हमारी भूल प्रारम्भ हुई कि हमें अपनी आत्मा को सम्यक्ती बना कर उसे जिन बनाना या मानना था और उसी की पूजा - भक्ति व दर्शन और आराधना करनी थी कि हे जिन ! अब तू जिनवर या जिनेन्द्र बन कर मोक्ष-धाम पधार ! जिस तरह कि अनन्त आत्मायें संसार दुःखों से ऊब कर भगवान् के उपदेशानुसार चल कर पहले जिन (सम्यक्ती) बनीं और फिर जिनवर या जिनेन्द्र बन कर मोक्ष पधार गई ।" तारणतरण फूलना ३ - तारनतरन फूलना = इसमें श्री तारन स्वामी कह रहे हैं-तार-तरन मिलि मुक्ति रमाए
SR No.009703
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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