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________________ ३२ ]= तारण-वाणी: किं रत्न कार्य बहुविधि अनंतं किं अर्थ अर्थ नहि कोपि कार्यं । किं राज चक्रं किं काम रूपं, किं तत्व वेत्वं विन शुद्ध दृष्टि ॥२२॥ " - "इस माल के दर्शनों में न तो भूप, रत्नादि पत्थर ही काम आवें । ना सार्वभौमों के राज्य या धन ही इस गुणावलि को देख पायें ॥ ना तो इसे देख तत्वज्ञ पायें, ना कामदेवों से हग-सुखारी ! दर्शन वही कर सके मालिका का, थे जो सुनो शुद्धतम दृष्टि धारी ।।" पुनश्च - हे श्रेणिक ! इस माला को प्राप्त करने में न तो रत्नादि पत्थर ही काम आते हैं और न चक्रवर्तियों के राज्य पाट या वैभव ही । तथा कामदेव का तीनों भुवन को मोह लेने वाला रूप भी इस माला को प्राप्त न कर सका । तात्पर्य यह है कि - बिना शुद्ध दृष्टि के ये सब ही इस अध्यात्म माला को पाने में असफल रहे अर्थात न पा सके । जे इन्द्र धरणेन्द्र गंधर्व यक्षं, नाना प्रकारं बहुविहि अनंतं । तेऽनंत प्रकारं बहु भेय कृत्वं, माला न दृष्टं कथितं जिनेन्द्रैः ॥२३॥ “श्रेणिक ! सुनो वास्तविक गूढ़ यह है, जो पूर्णतम है सम्यक्त्व धारी । केवल वही पुण्यशाली सुजन ही, नृप ! घर सके मालिका यह सुखारी ॥ जो इंद्र, धरणेन्द्र, गंधर्व, यक्षादि, नाना तरह के तुमने बताये । वे स्वप्न में भी कभी भूल राजन् ! यह दिव्य माला नहीं देख पाये ।” हे कि ! इन्द्र इत्यादि संसारी भावनाओं की कामना वाले इस माला के दर्शनों से वंचित रहे. भले ही उन्होंने अनेक भेद प्रभेद पूर्वक आचरण किये, किन्तु अध्यात्म माला और उसके पाने के रहस्य को समझे बिना कोई भी उसे न पा सके। दूसरे शब्दों में तात्पर्य यह कि इस माला का संबंध रत्नादि पत्थरों से, चक्रवर्तियों के राज्य-वैभव से, इन्द्र, धरणेन्द्र, गन्धर्व, यक्षादि की विभूति से या कामदेव के अद्वितीय रूप से न होकर आत्मा के विशिष्ट गुणों से है; इसलिये यह सब इसे प्राप्त न कर सके । श्रक ! यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है । इसके रहस्य को समझने में भी तुम भूल न करना ।
SR No.009702
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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