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________________ ==तारण-वाणी = [ २५ सम्यक्त्व शुद्धं हृदयं समस्तं, तम्य गुणमाला गुथतस्य वीर्य । देवाधिदेवं गुरु ग्रन्थ मुक्तं, धर्म अहिंसा क्षमा उत्तमध्यं ॥८॥ सम्यक्त्व की चारु चन्द्रावली से, सबके हृदय-हार हैं जगमगाते । पुण्यात्मा, बीरवर जीव ही पर, उसके गुणों को कर व्यक्त पाते ॥ जिनराज ही देव हैं ज्ञानियों के, गुरु ग्रंथ-निमुक्त, कल्याणकारी । है धर्म परमोच्च उत्तम अहिंमा, जिसमें विहँसती क्षमा शक्तिधारी ।। सम्यग्दृष्टि पुरुप का हृदय सम्यक्त से छलछलाता रहता है। ठीक यही हाल हम सब का भी है, क्योंकि निश्चय नय से हम भी तो सब शुद्ध आत्माएँ ही हैं, पर यह सम्यक्त्व सबके पास होते हुये भी सब अपने आपमें विशुद्ध अष्टि से देखने में, पूर्ण होते हुए भी केवल कुछ ही आत्माएँ ऐसी होती हैं जो अपने इस सम्यक्त्व को अपनी पूर्णता को ऊपर लाने में समर्थ हो पाती हैं और इस तरह अपने आत्मबल का दिग्दश कराती हैं । अष्ट कमों पर जय पाने वाले अरहंत महाप्रभु और बाईस परीषह सहन करने वाले निग्रंथ माधु इस पौरुप के ज्वलन्त उदाहरण हैं। संसार की सारी शक्तियों के स्वामी होते हुए भी अहिंसा उनका धर्म है और क्षमा है उनका आभूपण । नत्वार्थ सार्धं त्वं दर्शनेत्वं, मलं विमुक्तं सम्यक्त्व शुद्धं । ज्ञानं गुणं चरणस्य सुद्धस्य वीर्य, नमामि नित्यं शुद्धात्म तत्वं ॥९॥ तत्वार्थ के सार को तुम विलोको, जो शुद्ध सम्यक्त्व का बन्धु! प्याला । परिपूर्ण जो शुद्धतम ज्ञान से है, जो है अतुल शक्ति चारित्र वाला | यह सार प्यारा शुद्धात्मा है, चिर सुखसदन का अनुपम सु साधन । ऐसे अमोलक विज्ञानघन को, मैं नित्य करता सहस्राभिवादन ॥ जीव, अजीवादि सातों तत्त्वों के निष्कर्ष पर यदि हम विचार करें तो पता लगेगा कि जीव तत्व हो इन सब में अपनी प्रधानता रखता है। जीव तत्त्व, कमों से विमुक्त और अतुल ज्ञान गुण तथा शक्ति का भण्डार है । सम्यक्त्व के इस पुज को मैं नमस्कार करता हूँ जो कि अपने ही प्रकाश से अपने आपके आनन्द में तन्मय है।
SR No.009702
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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