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________________ तारण-वाणी [ २३ संसार दुक्खं जे नर विरक्तं, ते समय शुद्धं जिन उक्त दृष्टं। मिथ्यात्व मद मोह रागादि खंडं, ते शुद्ध दृष्टी तत्वार्थ साधं ॥४॥ श्री जैन वाणी में मुख कमल से, कहते गिरा सिद्ध परमात्मा हैं । संसार-दुःखों से जो परे हैं, भव्यो वही जीव शुद्धात्मा हैं । मिथ्यात्व, मद, मोह, रागादिकों-से, जिनने किये हैं रिपु नाश मारी । वे ही सुजन हैं तत्वार्थ ज्ञाता, वे ही पुरुष हैं सम्यक्त्वधारी ॥ जिन्हें आत्मा की पहिचान हो जाती है, उनके पास दुःख नाम की कोई वस्तु नहीं रह जाती, अत: इस संसार में शुद्धात्मा या महात्मा केवल वही पुरुष हैं जो संसार के दुःखों से पर हो चुके हैंजो यह नहीं जानते कि आत्मा को कलुषित करने वाला दुःग्व आग्विर किम पदार्थ का नाम है, ऐसे महात्मा न तो फिर संसार के मिथ्या विश्वासों में फँसते हैं और न राग द्वेष या ममता मोह के जाल में ही। संसार में जो आठ प्रकार के मद कहे जाते हैं, उनको तो वे खंड खंड ही कर डालत है। विश्व की कल्याण करने वाली, करुणामयी जिनवाणी ऐसे ही महात्माओं को शुद्ध सम्यग्दृष्टी के नाम से पुकारती है, संबोधन करती है। शल्यं त्रियं चित्त निरोधनेत्वं, जिन उक्त वाणी हृदि चेतनेत्वं । मिथ्याति देवं गुरु धर्मदृरं, शुद्ध स्वरूपं तत्वार्थ सार्धं ॥५॥ श्री वीर प्रभु के अमृत-वचन का, जिनके हृदय में जलना दिया है। मिथ्यादि त्रय शल्य का रोग जिनने, सम्यक्त्व-उपचार से क्षय किया है ।। मिथ्यात्व-मय देव गुरु धर्म से जो, रहते सदा है परे आत्म-ध्यानी । वे ही पुरुष हैं शुद्धात्म-प्रतिमूर्ति, सम्यक्त्वधारी तत्वार्थ-ज्ञानी ॥ मिथ्या, माया, निदान इन तीन शल्यों से जिनके हृदय रहित हो जाते हैं, भगवान के वचन जिनके मन-मन्दिर में नितप्रति गूंजते हैं और जो खोटे मार्ग पर ले जाने वाले देव, गुरु और धर्म से दूर और कोसों दूर रहा करते हैं, वे ही पुरुष वास्तव में शुद्धात्मा के प्रतीक होते हैं और उनमें ही वास्तव में तत्त्वार्थ का यथार्थ सार भरा हुआ होता है।
SR No.009702
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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