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________________ प्रस्तावना। कथारत्नकोशनी ॥४ ॥ REAUCRACHCA चारप्रचारी बनावे के अने अजरामर परिस्थिति सुधी पहोंचाडे छे. बोलता चालता उपदेशक करता, धर्मकथानुयोग मानवना मन उपर एवी सारी असर उपजाये छ जे धीरे धीरे पण पाकी थएली अने जीवनमा उतरेली होय छे. संक्षेपा एम कहीं शकाय के धर्मकथानुयोग मानवने खरा अर्थमा मानवरूपे घडी शके छे अने आध्यात्मिकदृष्टिए पूर्ण स्वतंत्रता सुधी पण पहोंचाडे छे. ३ कथाना प्रकारो अने कथावस्तु आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिवरे समराइचकहामां कथाओना विभाग करतां अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा अने संकीर्णकथा एम चार विभाग चताब्या छे. जे कथामा उपादानरूपे अर्थ होय, वणजवेपार, लडाईओ, खेती, लेख-लखत वगेरेनी पद्धतिओ, कळाओ, शिल्पो, सुवर्णसिद्धि वगेरे धातुवादो, तथा अर्थोपार्जनना निमित्तरूप साम, दाम, दंड आदि नीतिओनुं वर्णन होय तेनु नाम अर्थकथा. जेमां उपादानरूपे काम होय अने प्रसंगे प्रसंगे दूतीना अभिसारो, स्त्रीओना रमणो, अनंगलेखो, ललितकळाओ, अनुरागपुलकितो निरूपेला होय ते कामकथा. जेमा उपादानरूपे धर्म होय अने क्षमा, मार्दव, आर्जव, अलोभ, तप, संयम, सत्य, शौच वगेरेने लगतां मानवसमाजने धारणपोषण आपनारां अने तेनु सत्त्वसंरक्षण करनारा वर्णनो होय ते धर्मकथा. अने जेमा धर्म, अर्थ अने काम ए ऋणे वगोंर्नु यथास्थान निरूपण होय अने एत्रणे वर्गोने समजाववा तेमज परस्पर अबाधक रीते व्यवहारमा लावचा युक्तिओ, तर्को, हेतुओ अने उदाहरणो वगेरे आपेलां होय ते धर्मकथा. कथाओना आ चार प्रकार पैकी केवळ एक धर्मकथा ज धर्मकथानुयोगमां आवे छे. मूळ जैन आगमोमां पण शाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अंतकृदशांग, अनुत्तरौपपातिकदशांग, विपाक वगेरे अनेक आगमो पण धर्मकथाने प्रधानपणे वर्णवे छे. हाताधर्मकथागर्नु जे प्राचीन कथासंख्याप्रमाण कहेवामां आन्यु छे तेमां ते ॥४ ॥ R NAMASSA अक्षरपरिचय विनाना छतां पोतानी हैयाउकलतथी व्यवहार अने परमार्थनो तोड काढनारा लोकोनो समावेश छे. आ ९७ टका जेटली अत्यधिक संख्या धरावनारा लोको विज्ञान, तत्त्वज्ञान, गणित विद्या, भूगोळ के खगोळविद्यामां ऊंडा ऊतरवा जराय राजी नयी तेम तैयार पण नथी. तेमने तो घणी सरळ रीते समज पडे अने ए समजद्वारा जीवननो रस माणी शकाय अने व्यवहार तेमज परमार्थने समजी मानवजीवननी कृतकृत्यता अनुभवाय एवा साहित्यनी अपेक्षा छे. एटले ए वस्तुने आपणा पूर्व महबिओए विपुल प्रमाणमा कथा, उपकथा, आख्यानो, आख्यायिकाओ. ऐतिहासिक चरित्रोआदि सर्जीने पूरी रीते संतोषी पण छ. आ रीते जोतां कथासाहित्यनो संबंध मुख्यतया आमजनता साथे छे, अने आमजनता विपुल होबाथी तेनी साथे संबंध धरावतुं कथासाहित्य पण विपुल, विविध अने आमजनतानी खासियतोने लक्षमा राखी सुगम अने सुबोध भाषामां सरजाएलुं छे. आ प्रकारर्नु कथासाहित्य जेम जैनसंप्रदायमा विपुल छे एज रीते वैदिक अने बौद्धसंप्रदायमां पण अति विपुल प्रमाणमा छे; एटलं ज नहि पण भारतवर्षेनी जेम भारतवर्षनी बहार पण आ जातनु कथासाहित्य एटला ज प्रमाणमा उपलब्ध थाय छे. ज्ञाननी दृष्टिए विज्ञान, तत्त्वज्ञान, भूगोळ, खगोळ, गणित, आयुर्वेद, अध्यात्मशास्त्र, योगविद्या, प्रमाणशाख वगेरे विद्याओर्नु महत्त्व जराय ओछु नथी, परन्तु ते बधी गहन विद्याओने सर्वगम्य करवानुं साधन मात्र एक कथासाहित्य छे; माटे ज भारतवर्षेना तेमज भारतनी बहारना प्राचीन अर्वाचीन कुशाग्रमति विद्वानो पण कथासर्जननी प्रवृत्तिमा पड्या छे अने ए द्वारा एमणे आमजनताने त्याग, तप, वैराग्य, धीरज, क्षमा, निस्पृहता, प्राणिसेवा, सत्य, निर्लोभता, सरळता आदि गुणोनी सिद्धि माटे विविध प्रेरणाओ आपी छे. आमजनताने केळववानुं काम सहज साध्य नथी, तेम छतां त्याग, सदाचार, सरळता, समयज्ञता आदि
SR No.009701
Book TitleKaharayana Koso
Original Sutra AuthorDevbhadracharya
AuthorPunyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1944
Total Pages393
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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