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________________ देवभद्दसरिविरहओ कहारयणकोसो ॥ सम्मतपडलयं । का सम्यक्त्वाधिकारेनर वर्मनृपककथानकम् ॥ एमाइसणाई वागरमाणो किलिट्ठमण-वयणो । मरिउं असुरनिकाए किन्बिसियासुरसिरिं पत्तो ॥२४२॥ तत्तो चविउं इम्हि सावयभावं गओ वि एस इहं । पुराणुवेहउ चिय पड्डच्च मुणिणो इय भणेइ ॥२४३॥ ___ इय सोचा तं सट्टे पनविउं ठाविउं च सुहमग्गे। नरवइपमुहा सन्चे गिहिधम्मे उजया जाया ॥२४४ ॥ कारियजिणवरभवणा, सम्माणियपणइणो मुणियसमया। समणजणपज्जुवासणपराइणा लोगठिइँकुसला ॥ २४५ ॥ सविसेसजाणणम्मि समुजया विर्हयकुमयवामोहा । दक्खिन्न-दयाइगुणनिया य भववासनिविना ॥२४६ ॥ इय ते विनायजहत्थियत्थसिद्धन्तसारसबस्सा । जिणधम्मे रायाई निचलचित्ता ददं जाया || २४७॥ सूरी वि सुचिरमणुसासिऊण रायाइणो जहाभिमयं । विहरिउमारद्धो गाम-नयर-पुरमंडियं वसुहं ॥ २४८ ।। अह अनया कयाई सोहम्मेसहडिएण सुरवइणा। करकलियामलयं पि ओहीए मही नियंतेर्ण ॥२४९॥ सम्मत्तनिचलमणं मुणिउं तं भूवई सभापुरओ । भणिय भो भो तियसा ! नरबम्मनराहिवो एस ॥ २५० ॥ ससुराऽसुरतिजएण विन चालिङ तीरेए जिणमयाओ। ता एत्तो वि न धन्नो कयपुत्रो वा जैए अनो ॥ २५१ ॥ सोऊण य वयणमिमं सुवेगनामो सुरो विचिंतेइ । बालाणं व पहणं जहतह जन्ति उल्लावा ॥ २५२ ।। कहमन्त्रह नरमित्तो न चालिउं तीरइ ति हरिराह ? | अहबा सयमेव तहिं गंतुमहं तं परिक्खामि ॥ २५३ ॥ १ 'पूर्वानुवेधात्' पूर्वसम्बन्धाद् एव प्रतीत्य ॥२-परायणा:-तत्पराः ॥ ३ "ठिई प्रती ॥ ४ विदियकुमुय' प्रती । विहतकुमतव्यामोहाः॥ ५ विज्ञातयथास्थितार्थसिद्धान्तसारसर्वस्वा ॥ ६ सौधर्मसभास्थितेन ॥ पिव इवार्थकमध्ययम् ॥ ८ पश्यता॥ २ शक्यते ।। १० जगति ॥ ११राजन्ते। ॥१२॥ ॥१२॥ RANSARKAKAKAKKARKIRRsxxic+k+sts+sts+%%%* NextKWAR आमे घडे निहि जहा जलं तं घड विणासेइ । इय सिद्धंतरहस्सं अप्पाहारं विणासेइ ॥ २०७॥ जोग्गा-जोग्गमयुज्झिय धम्मरहस्सं कहेइ जो मूढो । संघस्स पवयणस्स य धम्मस्स य पच्चणीओ सो ॥२०८ ॥ 'न पमाणजुचमुवहिं धरिति' एयं पितुच्छमाभाइ । असढोवदंसियत्तेण तविहस्सुवहिनिवहस्स ॥ २०९॥ इहरा बाहुट्ठवियं पत्तं एगं तु पडलयच्छन्नं । पत्ताबंधकयं पुण बीयं मचं अगोअरओ ॥ २१० ॥ एगंगिय रयहरणं भवे न इन्हि विसिट्टमणिणो वि । ता एत्थ पयत्थम्मि पुवे मुणिणो चिय पमाणं ॥२११ ॥ 'सेवंति य अववाय' दूसणमेयं पि घडइ नो सम्मं । तबिहसंघयणाईविरहा सुत्नुत्तिओ य तहा ॥ २१२॥ सवत्थ संजमं संजमाउ अप्पाणमेव रक्खेजा । मुच्चइ अइवायाओ पुणो विसोही न याविरई ॥२१३ ।। किंचकाहं अछित्ति अदुवा अहीहं तवोवहाणम्मि य उअमिस्सं । गणं व नीईय व सारइस्सं सालंबसेबी समुवेइ मोक्खं । सीलंगाण वि भावो नेओ सव्वन्नुवयणओ चेव । कह भणियमबहेम ? बकुस-कुसीलेहिं जा तित्थं ॥ २१५॥ कालाणुसारकिरियारय त्ति चारित्तिणो पवुचंति । जह कप्परुक्खविरहे रुक्खा भन्नति लिंबा वि ॥ २१६ ॥ अह सम्मममुणियम्मी मुणिम्मि नमणा कीरइ कहं ? ति । वभिचारदसणाओ एयं पि न सुंदरं जम्हा ॥ २१७॥ छउमत्थसमयचा बवहारनयाणुसारिणी सदा । तं ववहारं कुछ सुज्झइ सबो वि समईए ॥ २१८॥ १ 'आमें अपक्के ॥ २ विसुव प्रती ॥ ३ अविवा' प्रतौ ॥ ४ गाथेयमोचनियुक्ती ४६ तमी॥ ५ गायेय व्यवहारपीठिकायाँ १८४ तमी ॥ ६ संगममु प्रती ॥ ७छयस्थसमयचर्या ॥ ८ कर्मन् । ****************
SR No.009701
Book TitleKaharayana Koso
Original Sutra AuthorDevbhadracharya
AuthorPunyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1944
Total Pages393
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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