SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना। कथारत्नकोशनी ॥ १३ ॥ % % % उपरथी लखाएला होय तेम लागे छे. प्रतिना पानानी दरेक पुठीमां पांच के छ लीटीओ लखेली छे. दरेक लीटीमा ११५ थी १३० अक्षरो छे. प्रतिनी लंबाई-पहोळाई ३०४२ इंचनी छे. आ प्रति पण उपर जणाच्या मुजब दोरो परोचवा माटे वचमा बे काणां पाडी प्रण विभागमा लखवामां आवी छे, प्रतिनी लिपि अने स्थिति जोतां ए ख० प्रति करतां वधारे प्राचीन छे अने एनी स्थिति जराजीर्ण थई गई छे. प्रस्तुत प्रति अत्यारे प्रवर्तकजी महाराजश्रीना शानभंडारमा होई एनी संज्ञा अमे प्र. राखी छे अने ज्या प्रतिमांना सुधारेला पाठभेदोने अमे पाठांतर मा आप्या छे त्या प्रसं० एम जणाब्युं छे. प्रतिओनी विशेषता अने शुद्ध्यशुख्यादि उपर जे ये प्रतिओनो परिचय आपवामां आव्यो छे ते पैकी प्र० प्रति भ्रान्तिरहित शुद्ध लिपिमा लखाएली छे. एमा लेखकना लिपिविषयक अज्ञानजनित अशुद्धिओ बहु ज ओछी छे तेमज ए प्रतिने कोई विद्वाने सुधारेली पण छे; एटले तेना विषे फक्त एटल ज कहेवार्नु रहे छे के प्रतिना शोधके कथासमाप्तिनी पुष्पिकामां केटलेक ठेकाणे “इति श्रीदेवभद्रसूरिविरचिते" ए प्रमाणे ग्रंथकारना नामनो निर्देश करती जे पंक्ति उमेरेली छे ए अमे स्वीकारी नथी. आ सिवाय आ प्रति विषे खास कशु ज कहेवार्नु नथी. परंतु खं० प्रतिमा टेखकना प्रमाद अने लिपिविषयक अज्ञानपणाने लईईई, ए प, गु तु, चव, हड, ठ व, ड द, ड र, ण ल, स्थ च्छ, न्त त्त, न्ति ति, न्नु तु, नु तु, पच, प य, वव, म स, ल भ, श प स इत्यादि अक्षरोनो परस्पर विपर्यास थवाने %% % 4% ॥ १३ ॥ लीचे घणी ज अशुद्धिओ वधी जवा पामी छे. तेम ज प्रतिना लेखके घणे ठेकाणे पडिमात्रा अने हस्व इकारनी वेलंदि--िमां कशो भेद राख्यो नथी. घणे ठेकाणे एकवडाने बदले वेबडा अने बेवडाने बदले एकवडा अक्षरो लखी नाख्या छे.आ जातना अशुद्ध पाठोने अमे लिपिभ्रान्तिना नियमो, शाखनो विषय, ग्रंथकारनी भाषा, छंदनु औचित्य आदि वस्तुने लक्षमा राखी सुधारवा प्रयत्न कर्यो छे. अने आ रीते सुधारेला पाठोने, वाचकगणने यांचवामा गरबड के भ्रान्ति न थाय ए माटे कोष्ठकमां न आपां मूळमां ज अमे आप्या छे अने अशुद्ध पाठोने यथायोग्य नीचे टिप्पणमा आप्या छे. परंतु ज्या ज्यां बीजी प्रति सहायक थती रही छे त्यां अमे एवा अशुद्ध पाठोने जता ज कर्या छे. प्रस्तुत संपादनमा घणे ठेकाणे कुन्त, होन्ति, कुण्डल इत्यादि जेवा परसवर्णयुक्त पाठो नजरे पडशे ए अमे नथी कर्या, पण प्रतिमा ज ए जातना परसवर्णवाळा पाठो छे. तेमज उचिय (सं उचित)ने बदले उचिय, सक्खं सक्खा (सं० साक्षात् ) ने बदले संखं संखा जेवा विविध प्रयोगो देखाशे अने दी तथा अनुस्वारथी पर बेवडाएला अक्षरवाळा बंच्छा, कैक्खा, अहाक्खाय जेवा पाठो पण जोवामां आवशे ए बधा पाठो आखा ग्रंथमा ठेक-ठेकाणे उपलब्ध थता होई एबधाने सुधारवा अनुचित समजी जेम ने तेम कायम राखवामां आव्या छे. प्रस्तुत मुद्रणमा ज्या ज्या प्रतिमा पाठो के अक्षरो पडी गएला लाग्या छे त्या त्या अर्थानुसंधान माटे जे नवी पाठपूर्ति करवामां आवी छे ए दरेक पाठोने [ ] आवा चोरस कोष्ठकमा आप्या छ, प्रस्तुत प्रकाशनमा पत्र १०१ना बीजा पृष्ठमा पहेला श्लोकना उत्तरार्धमा भान्तिथी 'जनितसम्मदि' पाठ छपायो छे तेने सुधारीने 'जनितसम्मुदि' ए प्रमाणे यांचयो. %AIRPENTSk%%%AE%E0%A4-%% + 5 0 %A5% %
SR No.009701
Book TitleKaharayana Koso
Original Sutra AuthorDevbhadracharya
AuthorPunyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1944
Total Pages393
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy