SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८३ श्री जम्बूस्वामी चरित्र जम्बूकुमार का रूप-लावण्य एवं सगाई पुण्यवानों की शरण में ऐसे कौन-से गुण हैं, जो आकर वास नहीं करते हैं? और फिर जहाँ पुण्य के साथ पवित्रता का भी संगम हुआ हो तो वहाँ किस बात की कमी रह सकती है? अर्थात् किसी भी बात की नहीं। सुवर्ण के समान रंग और कामदेव का रूप, जिस पर चमकता हुआ पूर्ण यौवन का सूर्य, उसमें भी उत्तमोत्तम परमाणुओं का संगठन; फिर तो जम्बूकुमार कोई अद्भुत ही छटा बिखेरें - इसमें क्या आश्चर्य है? वे वज्रवृषभनाराच संहनन के धारी थे, उनका समचतुरस्र संस्थान था, जिसमें अनेक शुभ लक्षण वास कर रहे थे। रोगों की तो परछाईं भी नहीं थी। उनके रूप-लावण्य व यौवन को देखकर मानवों के नेत्ररूपी भ्रमर कहीं और जगह रमण ही नहीं करते थे। उनका कामदेव के समान रूप को देख कई स्त्रियाँ सदा उन्हें देखती ही रहना चाहती थीं। कोई-कोई तो गृहकार्य छोड़कर उनके रूप को देखने झरोखों पर बैठ जाती थीं, कोई उनके निकलने की प्रतीक्षा करती थीं, तो कोई-कोई सड़कों पर घूमती रहती थीं। इत्यादि नानाप्रकार से स्त्रियों के मन की गति हो जाया करती थी, सो ठीक ही है क्योंकि पुण्यवान एवं रूपवान को कामी जीव चाहते ही हैं। नव-यौवनाओं की यदि ऐसी दशा थी तो दूसरी ओर वात्सल्य एवं ममता से भरी हुईं मातायें 'उस जैसा अपना पुत्र हो' - ऐसी भावना भाती थी एवं सदाकाल उसके अभीष्ट की कामना करती थीं। कितनी ही युवतियाँ उसे भ्राता के रूप में देखती थीं। उसके मित्रजन चैतन्य स्पर्शी तत्वचर्चा सुनकर उसे सदा गुरुवत् आदर देते थे। वे भी सभी पर साम्यभाव से स्नेह लुटाते थे। ___ कुमार की सद्गुण-सम्पत्ति देख एवं सुनकर अनेक सेठों का का मन उसे अपना दामाद बनाने को लालायित हो गया था। अत: सेठ सागरदत्त अपनी पत्नी पद्मावती से अपनी कन्या पद्मश्री के संबंध में, सेठ धनदत्त अपनी पत्नी कनकमाला से अपनी पुत्री कनकधी के सम्बन्ध में, वणिक-शिरोमणि वैश्रवण सेठ अपनी पत्नी विनयमाला से अपनी सुता विनयश्री के संबंध में और सेठ वणिकदत्त अपनी पत्नी विजयमती से अपनी सुपुत्री रूपश्री के सम्बन्ध में विचार करने
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy