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________________ ७८ जैनधर्म की कहानियाँ राजा श्रेणिक भगवान की दिव्य-ध्वनि में अपने प्रश्नों का समाधान पाकर प्रसन्न हो घर लौटने की भावना से जिनेन्द्र-वंदना करके प्रभु का स्तवन कर रहे हैं - "हे प्रभो! आप जगत को शरीर-सहित दिखने पर भी सदाकाल अशरीरी अर्थात् ज्ञानशरीरी ही हो। हे नाथ! आप राग-द्वेष से रहित सदा पूर्ण ज्ञानमय हो। आप अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख, अनंतवीर्य और अनंत विभुतामय हो। आप प्रभुत्वशक्ति युक्त हो। आप ज्ञेयों से अप्रभावित ज्ञायक हो। आप आनंदमयी मूर्ति हो। आप जगत में सक्रिय दिखने पर भी निष्क्रिय हो, ध्रुव हो। हे प्रभो! आप सदा परद्रव्यों से एवं परभावों से असम्बद्ध मात्र चैतन्यमय ही हो। आप अनंत गुणों के निधान हो, चैतन्य रत्नाकर हो। हे प्रभो! आपकी जय हो, जय हो।" इत्यादि नाना प्रकार से भगवान् की स्तुति करके राजा ने अपने गृह की ओर प्रस्थान किया। अपने घर पहुँच कर राजा द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म के नाशक तथा अनंत-सुखदायक जिनधर्म की उपासना करते हुए सुखपूर्वक रहने लगे। जम्बूकुमार का अवतरण आत्महितकारक वीतराग धर्म की आराधना करते हुए राजा श्रेणिक राज्य करते थे। राज्यश्रेष्ठी श्री अर्हद्दास एवं सीता समान शीलवती गुणवती एवं रूपवती जिनमती सेठानी, दोनों जन परस्पर स्नेह भाव से न्यायपूर्वक गृहस्थ के सुख भोगते हुए जैनधर्म में दत्तचित्त रहते थे। उन्हें कुछ पता ही नहीं था कि हमारे आंगन में मंगल सूर्य उदित होने वाला है। शीघ्र ही दिनकर के आगमन के कुछ चिह्न दिखने लगे। सेठानी जिनमति ने रात्रि के पिछले प्रहर में पाँच मंगल स्वप्न देखे - १. भ्रमरों के समूह से गुंजायमान एवं फल-फूलों से लदा सुन्दर जाम्बूवृक्ष २. धूम्ररहित अग्नि ३. हरा-भरा धान का खेत ४. पद्म से शोभित सरोवर और ५. तरंग सहित समुद्र।। __स्वप्न पूर्ण होते ही जिनमति जाग गई। वे मन ही मन इन शुभ स्वप्नों का कारण खोजने लगी - "अहो! क्या कोई दिव्यपुरुष मेरे गर्भ में आनेवाला है? क्या इस घर में किसी को केवलज्ञान लक्ष्मी उदित होनेवाली है? श्री वीरप्रभु के मोक्षगमन के बाद तीन
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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