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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र विद्युन्माली देव की चार देवियाँ श्रेणिक महाराज अंजुलि जोड़, नतमस्तक हो विनयपूर्वक श्री गौतमस्वामी से पूछने लगे - "हे स्वामिन् ! इस विद्युन्माली देव की जो चार देवियाँ हैं, वे किस पुण्योदय से देवियाँ हुई हैं?" तब श्री गौतमस्वामी बोले - हे जिज्ञासु श्रेणिक! इस देश में चंपापुरी नाम की नगरी है। वहाँ धनवानों में प्रधान एक सूरसेन सेठ था। उस सेठ की चार रानियाँ थी। उनके नाम इसप्रकार थे - जयभद्रा, सुभद्रा, धारिणी और यशोमती। पुण्योदय से इन रानियों के साथ वह बहुत समय तक सुख भोगता रहा। पुण्योदय क्षीण होते ही उसे पाप ने आ घेरा, उसके शरीर में श्वांस, क्षय, जलोदर, भगंदर, गठिया आदि अनेक रोग हो गये। जब रोगों की तीव्रता हुई, तब शरीर में रहने वाली धातुओं ने विरोध का रूप धारण कर लिया, जिससे उसे अशुभ वस्तुओं की तीव्र अभिलाषा जाग उठी। रोगों की प्रचुरता में ज्ञान भी मंद पड़ गया और क्रोध के आवेश में वह अपनी पत्नियों को मुठ्ठियों एवं लाठियों से मारने लगा और कुत्सित वचन बोलने लगा। वह दुर्बुद्धि होने के साथ-साथ भ्रातिवान हो अपनी पत्नियों के शील में दोष लगाते हुए बोला - "तुम लोगों के पास मैने किसी पर-पुरुष को खड़ा देखा था। अब कभी दिखा तो मैं तुम लोगों के नाक, कान आदि छेद डालूँगा और तुम्हारे प्राण ले लूंगा।" इत्यादि हृदय विदारक वचन कहने लगा। पापोदय से वह रौद्र परिणामी हो गया। वे चारों पत्नियाँ मन ही मन बहुत दुःखी हो सोचती हैं - "हे प्रभु! हम लोगों ने कभी पर-पुरुष का विकल्प भी नहीं किया, यह कौन से पूर्वकृत पाप-परिणाम का फल आया है ? धिक्कार है इस स्त्री पर्याय को और इस जीवन को। इसका प्रायश्चित्त तो अब जिनधर्म की शरण के अलावा और हो ही नहीं सकता। अतः वे धर्माचरण करने की भावना भा रही थीं, उन्हें तीर्थवंदना के भाव बारंबार उठ रहे थे। उन्होंने सेठ साहब का उचित उपचार
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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