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________________ जैनधर्म की कहानियाँ है तो उसे भव्य समवशरण एवं उसके मध्य विराजमान भगवान दिखे उसने तत्काल हाथ जोड़कर नमस्कार किया और शीघ्र ही श्रेष्ठतम फलों को चुनकर महाराजाधिराज श्रेणिक की सेवा में प्रस्तुत हुआ तथा राजा को प्रणाम कर सभी सुन्दर फलों को समर्पित करता हुआ खड़ा हो गया। महाराज श्रेणिक ने वनपाल से समस्त ऋतुओ के सुन्दर-सुन्दर फलों को पाकर आश्चर्य व्यक्त किया तथा उसके प्रस्तुत होने का कारण पूछा? तब वनपाल हाथ जोड़कर रहने लगा - "हे राजन् ! मैं एक आनंदमयी समाचार सुनाने प्रस्तुत हुआ हूँ। वह समाचार यह है कि मैंने अपने ही नेत्रों से प्रत्यक्ष एक आश्चर्यकारी दृश्य देखा है, जिसका पूर्ण वर्णन तो मैं नहीं कर सकता हूँ, फिर भी कुछ वर्णन अवश्य करता हूँ। हे महाराज ! अनेक प्रकार से विपुलता को प्राप्त इस विपुलाचल पर्वत पर मंगलमयी देशना बरसाता हुआ श्री वीरप्रभु का समवशरण रचा हुआ है, जिसकी शोभा अद्भुत है। उसमें स्वर्गलोक के देवगण भी नतमस्तक हो, भक्तिविभोर हो प्रभु की सेवा-उपासना में मग्न वनपाल से आनंदमयी समाचार सुनकर राजा अति ही आनंदित हुआ। सिंहासन से उठकर सात कदम आगे चलकर प्रभु को परोक्ष नमस्कार किया तथा उसने उसी समय तत्काल ही भेरी बजवाकर समस्त नगरवासियों को उत्साह सहित श्रीमजिनेन्द्र महावीर प्रभु के दर्शनार्थ चलने का समाचार कहला दिया। श्री वीर प्रभु के विपुलाचल पर पधारने का संदेश शीघ्र ही सुगंधित वायु की भाँति सम्पूर्ण नगर में फैल गया। सभी नर-नारी शीघ्र ही स्वच्छ वस्त्रों को धारण कर हाथों में उत्तम-उत्तम द्रव्यों की थालियाँ लेकर पुलकित वदन चल दिये। भगवान के समवशरण के प्रताप से इस नगर में कोई रोगी नहीं रहा, कोई दीन-हीन और दरिद्री नहीं रहा, दुर्भिक्ष तो न जाने कहाँ चला गया। भूमि स्वर्ग-समान, कंकड़-कंटक रहित हो गई। मंद सुगंधित वायु चलने लगी।
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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