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________________ १४ ३ प्रस्तुत संशोधनमा धपरायेल ग्रंथोना बे भाग पडे छे; १ छपायेल २ लखेल. ग्रंथने शुद्ध करवा माटे, विषयने स्पष्ट करवा माटे, सरखामणी माटे के अभ्यासमां विशाळता आणवा माटे ज्यां ज्यां छपायेल ग्रंथोनो उपयोग थयेलो छे त्यां त्यां धणी जगोए तो शरुआतमां ते ते ग्रंथोना उपयोगी पाठो वगर संकोचे नीचे आपवामां आव्या छे. पण घणे स्थळे लाघव आदि अनेक कारणोने लीधे मात्र तेनां स्थळो ज सूचववामां आव्यां छे. परंतु ज्यां ज्यां लखेल पुस्तकोनो उपयोग कर्यो छे त्यां त्यां बनी शक्यु त्यां सुधी तेना पाठो ज नीचे आपवानो आग्रह राख्यो छे, जेथी अभ्यासीने दुर्लभ एवा लिखित पुस्तकोना पाठो सुलभ थाय. ४ अत्यार सुधीमा हजु क्यांय प्रसिद्धि नहि पामेल अने मोटे भागे अज्ञात अगर दुर्लभप्राय एवां सात लिखित पुस्तकोनो प्रस्तुत संशोधनमां उपयोग करवामां आव्यो छे, जे प्रथमना त्रण भागोमां अल्पप्राय छे. १ हेतुबिंदुटीका २ तत्त्वोपप्लव ३ सिद्धिविनिश्चय टीका ४ न्यायकुमुदचंद्रोदय ५ विशेषणवती ६ नन्दिचूर्णी अने ७ लघुनन्दिटीका. आ साते ग्रंथोनो करवा धारेलो सर्वांशे उपयोग थयो छे एम रखे कोई धारे. एम करवू ए वर्तमान मर्यादामां अशक्यप्राय हतुं छतां आवश्यक स्थळोए दिशासूचन पूरतो खास उपयोग कर्यो छे. ५ बीजा काण्डनी ४३ गाथाओमांनी प्रस्तुत विषय उपर महत्त्व धरावती केटलीक गाथाओनी व्याख्या महामहोपाध्याय श्रीयशोविजयजीए पोताना ज्ञानबिंदुप्रकरणमां करी छे. ए व्याख्या मुद्रित पण छे अने गंभीर पण छे. तो ए प्रस्तुत भागमां तेनो उपयोग आवश्यक छतां कर्यो नथी ते एम धारीने के भिन्नभिन्न स्थळे टिप्पणमां कटके कटके ए व्याख्या आपवी ते करतां एक ज साथे समग्र व्याख्या आपवी ए विशेष अनुकूळ थशे. तेथी प्रथमना त्रण भागोमां समाप्त थयेल नयकाण्डनी अनेक गाथाओ उपरनी उपाध्यायजीश्रीना भिन्न भिन्न ग्रंथोमां मळी आवती छूटी छूटी व्याख्याओना संग्रहरूपे आगळ आपवा धारेल परिशिष्टनी पेठे ज्ञानकाण्डमांनी गाथाओ उपरनी तेमनी व्याख्यान परिशिष्ट पण छेवटे ज आपवा धारीए छीए. ते साथे एमां विशेषता ए रहेशे के बीजा पण श्वेतांबर दिगंबर आचार्योए जे जे अने जेटजेटली गाथाओ उपर करेली व्याख्याओ उपलब्ध थाय छे ते पण परिशिष्टमां जोडवामां आवशे. त्रीजा काण्डनी गाथाओ विषे पण आ योजना योग्य धारी छे जेथी अत्यार सुधीमां सम्मतितर्कनी गाथाओ उपर छूटुं छूटुं के एकसाथे लखायेलं बधुं साहित्य अभ्यासीने एक ज स्थळे उपलब्ध थाय. प्रस्तुत भागना संशोधनकार्यमां पाठांतर लेवां, प्रतिओ जोवी वगेरे नीरस अने कठण छतां बहु किंमती कार्यमा उदारचेता प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजीना शिष्य श्रीचतुरविजयजीए पोताना सुशील अने विद्याव्यसनी शिष्य पुण्यविजयजी आदि साथे जे किंमती मदद आपी छे तेनी अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक अमे नोंध लईए छीए. सुखलाल अने बेचरदास.
SR No.009697
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size192 MB
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