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________________ १४ नार तेना मालिकोने धन्यवाद आपीए छीए. प्राप्त प्रतिओमाथी केटलीकनां नाम वाचक तेओना संकेतपरिशिष्टमां जोई शकशे. प्रस्तुत विभागमा टीकाकारे ग्रंथना के ग्रंथकारना, नामपूर्वक अगर नाम सिवाय, अपूर्ण के पूर्ण जे जे उल्लेखो कर्या छे ते बधानां स्थानो अमे इच्छा अने प्रयत्न छतां संपूर्ण रीते आपी शक्या नथी. छतां उल्लेखोना जे स्थानो अमे नोंध्यां छे, तेना संकेतोनुं स्पष्टीकरण आ भाग साथे आपवामां आवे छे. जे उल्लेखोनां मूळस्थानो नथी मळ्यां तेओनी पासे खुल्लां चोरस कोष्टको राखेलां छे. अभ्यासिओने विनंती छे के, अमे उल्लेखोनां जे जे स्थानो आप्यां छे तेमां तेओ सुधारवा जेवू जूए अगर नहि मळेल स्थानवाळा उल्लेखोनां स्थानो तेओना ध्यानमां आवे तो तेओ अमने ए बधुं लखी जणावे. अमे तेओना श्रमनी बहुज कीमती नोंध लईशं. प्रस्तुत भागमा पहेली गाथा अने तेनी संपूर्ण टीका आवे छे. तेनुं परिमाण लगभग साडासात हजार श्लोक जेटलुं हशे. तेमां जेटला मुख्य विषयो आव्या छे ते बधानो विस्तृत अनुक्रम तो छेवटेज अपाशे. अत्यारे तो आ भागमां आवेला मुख्य वादो अने तेने अंगे कराएला विभागोनी अने वच्चे वच्चे प्रसंगी आवेला ध्यान देवा योग्य खास विषयोनी नोंध विषयानुक्रममा आपेली छे. एटले आ विषयानुक्रम, ए टीकागत मुख्य मुख्य वादो अने तेना अन्तर्गत मुख्य मुख्य विभागो तथा प्रासंगिक उपयोगी विषयोनी नोंध मात्र छे. पाठांतर विगेरेनी समजः आ ग्रंथना संशोधन माटे अमे लगभग २५ प्रतिओ भेगी करी हती, तेमांथी १७ प्रतिओनो उपयोग करेलो छे, एनां नामो प्रतिओना संकेतोने स्पष्ट करतां जणावेलां छे. ए प्रतिओमांनी चारेक प्रतिओमां कोईनां करेलां टिप्पणो पण हतां, ते टिप्पणो, पाठांतरो अने अमे पण केटलेक स्थळे टिप्पणो आपेला छे ते बधुं अमे प्रत्येक पानानी नीचे लींटी दोरीने आपेलुं छे. जे जे प्रतिमाथी टिप्पण लीधेला छे ते ते प्रतिनां नाम ए टिप्पणो साथे आपेलां छे. प्रतिना टिप्पणो " " आ निशान वच्चे मूकेलां छे. जूओ ग्रंथ, पृ० २ पं० ३८ आ० टि. एटले आत्मारामजीनी प्रतिमां आवेलं टिप्पण. पाठांतरो मोटा अक्षरमा ( चालु अक्षरमा ) मूकेलां छे. क्यांय क्यांय अमे केवळ अशुद्ध पाठांतरो पण मूकेला छे ते एटला माटे के, लेखक के वाचक विगेरे फक्त अक्षरोनी समानताथी अने पोतानी असावधानता विगेरेनां कारणोथी केवी केवी जातना पाठांतरो वधारी मूके छे ए जाणी शकाय. संभव छे के, 'ग्रंथमां क्या क्या प्रकारे अशुद्धिओ वधे छे अने केवा केवा पाठभेदो थाय छे' तेनो इतिहास लखनारने आवां अशुद्ध पाठांतरोनो पण उपयोग थाय. जे टिप्पणो अमे करेला छे ते माटे कशुं निशान करेलु नथी. बधी प्रतिओमां टीकानो पाठ लेखक (लहिया ) विगेरेना दोषथी अशुद्ध थई गयो छे एम ज्या ज्या अर्थानुसंधान के वाक्यरचना आदिथी जणायुं त्यां त्यां ते पाठ कायम राखी सुधारवा जेटलो भाग (पाठ के अक्षर ) ( ) आवा निशानमा मूकेलो छे. अमे एवा केटलाक पाठोने शुद्ध करवामां 'प्रमेयकमलमार्तड' नो उपयोग विशेष करेलो छे. अने क्यांय क्याय प्रशमरतिप्रकरण,
SR No.009696
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size242 MB
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