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________________ संपादकीय निवेदन अनेक उपयोगी विषयोनो ऊहापोह करती विस्तृत प्रस्तावना तो प्रस्तुत ग्रंथ संपूर्ण छपाई रह्या पछीज लखी शकाय. अत्यारे तो आ संक्षिप्त निवेदनमा मुख्य बे बाबतोनुं सूचन करवानुं छे (क ) ग्रंथनुं विशिष्टत्व अने (ख ) प्रकाशननी योजना. ( क ) ग्रंथनी विशिष्टता निम्नलिखित बे बाबतोथी जाणी शकाशे (१ ) ग्रंथकार अने (२) ग्रंथर्नु बाह्याभ्यन्तर स्वरूप. (१) ग्रंथकार (मूळकार) समयः मूळना कर्ता आचार्य सिद्धसेन दिवाकर छे. जैनपरंपरा प्रमाणे तेओ विक्रमनी पहेली शताब्दीमां थई गएला मनाय छे. तेओ दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द अने समंतभद्र ए बन्नेना पहेलां थया होय तेवी संभावनानां केटलांक कारणो छे तेमज श्वेताम्बर अने दिगम्बरनो पंथभेद थया पहेलां पण तेओ थया होय तेम मानवानां केटलांक कारणो छे. तेथी विक्रमनी पहेली शताब्दीमां तेओ थयानी जैनपरंपरा उपर गम्भीरपणे ऐतिहासिकोए विचार करवो जोईए. अत्यारे केटलाक ऐतिहासिको तेओने विक्रमनी पांचमी शताब्दीमा मूके छे. स्थान, जाति अने धर्म: तेओनुं जन्मस्थान विदित नथी, पण उज्जयिनी अने तेनी आजुबाजुए तेओए जीवन गाळ्युं होय एम जणाय छे, तेथी तेओना ग्रंथोनी रचना पण तेज प्रदेशमां थयानो संभव छे. तेओ जाते ब्राह्मण अने कुलधर्मे वैदिक हता, पण पाछळथी तेमणे जैनाचार्य वृद्धवादीनी पासे जैनदीक्षा लीधी हती. __योग्यताः दिवाकर असाधारण जैन दार्शनिक अने संस्कृत प्राकृत भाषाना विद्वान् हता एटलुंज नहि पण तेओ मध्यकालीन प्रधान भारतीय दार्शनिक विद्वानोमांना एक हता, एम तेओनी कृतिओज कही आपे छे. तेमनी विचारमा उदारता, प्रतिभामा स्वतन्त्रता, ज्ञानमा स्पष्टता, गद्यपद्यलेखनमा सिद्धहस्तता अने वस्तुस्पर्शमां सूक्ष्मता तथा विविध दर्शनोना मौलिक स्वरूपमा निष्णातता, ए बधुं तेओनी थोडी पण उपलब्ध कृतिओमां वाक्यवाक्यमा जोनारने नजरे पडशे. कतिओः उपलब्ध कृतिओमां संमति मूळ प्राकृत छे. एकवीस बत्रीसीओ, न्यायावतार तथा कल्याणमंदिर संस्कृत छे. कल्याणमंदिरमा तीर्थकर पार्श्वनाथनी स्तुति छे. न्यायावतार ए संस्कृत जैन साहित्यमा पद्यबंध आदि तर्कग्रंथ होई समस्त जैन तर्कसाहित्यना पाया रूपे छे. बत्रीसीओ स्तुतिरूप होवा छतां तेमा दार्शनिक विषयो छे. वैदिक, बौद्ध अने जैन ए समकालीन समग्र भारतीय दर्शनोनुं स्वरूप ते बत्रीसीओमां छे. आ बत्रीसीओज षड्दर्शनसमुच्चय अने सर्वदर्शनसंग्रहनी प्राथमिक भूमिका छे. सिद्धसेननुं बीजुं नाम 'गन्धहस्ती' हतुं; तेओए आचारांगना प्रथम अध्ययन उपर विवरण लख्युं हतुं, जे 'गन्धहस्तिविवरण' कहेवाय छे, आजे ते उपलब्ध नथी. टीकाकार टीकाकार अभयदेव, श्वेताम्बरीय राजगच्छमां थएल प्रद्युम्नसूरिना शिष्य होई दशमा सैकामां थई गया छे. तेओनी जाति, जन्मस्थान आदि ज्ञात नथी; तेओनी बीजी कृति उपलब्ध के
SR No.009696
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size242 MB
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