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________________ स्वर्गस्थ जगत्पूज्य गुरुदेव श्रीविजयधर्मसूरीश्वरजी महाराजने, बनारस छोड्या पछी, एटले लगभग १६-१७ वर्षनी वात उपर, आवां ऐतिहासिक साधनो एकत्रित करी, भविष्यमा एक जैन इतिहास तैयार करवानी इच्छा उत्पन्न थइ हती. अने ते इच्छाने बर लाववा, गुरुदेवे एवां साधनो एकत्रित करवां शरु को हता, पूज्यपाद आचार्यश्री विजयेन्द्रमूरि महाराज (ते वखतना उपाध्याय इंद्रविजयनी महाराज) नो तो इतिहासनो खास विषय ज हतो. गमे तेवा विकट पहाडोमां प्रवेश करीने पण इतिहासनी सामग्री हाथ करवी, ए एमना मन, जीवननुं ध्येय प्राप्त करवा जेवू लागतुं-लागे छे परिणामे अनेक प्राचीन भंडारोमांथी हजारो ग्रंथोपरनी प्रशस्तिओ, सेंकडो प्राचीन सिक्काओ, अने केटलाए हजारनी संख्यामां न्हाना म्होटा शिलालेखोनो संग्रह थई शक्यो. बीनी तरफथी इतिहासोपयोगी जैन रासाओनुं सम्पादन कार्य पण आरंभापुं. जेना परिणामे स्वर्गीय गुरुदेवे ऐतिहासिक रास संग्रहना ३ भागो अने देवकुलपाटक एम चार ऐतिहासिक ग्रंथो बहार पडाव्या. ते उपरान्त ऐतिहासिक राससंग्रहनो चोथो भाग पण, आ पंक्तियोना लेखके सम्पादन करेलो बहार पड्यो छे. ___ जे वखते जैन लेखकोमा इतिहासना विषय तरफ बहुज अल्प प्रवृत्ति हती, ते वखते आ अगत्यना विषय तरफ स्वर्गीय गुरुदेवे अने पूज्य आचार्यश्री विजयेन्द्रसूरि महाराजे प्रवृत्ति आदरी हती. आ प्रवृत्तिना फलरुप जे कार्यो बहार आव्यां, एनो उदार साक्षरोए सारो आदर को हतो. अने 'देवकुलपाटक' जेवा एक नानकडा परन्तु इतिहासोपयोगी पुस्तक उपर एक लांबी समालोचना 'बॉम्बे क्रोनोकल' मां प्रकाशित थई हती. स्वर्गीय गुरुदेवना अने पूज्य आचार्य श्रीविजयेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, तथा मुनिराज श्री जयन्तविजयनी आदिना सतत प्रयत्नथी
SR No.009688
Book TitlePrachin Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri, Vidyavijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1929
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size81 MB
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