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________________ (१४) प्राकृतलेखाविभाग | इथं सतस सिनो' सिकरोति' तरेस बसे सुपवतविजयिचको कुमारीपवते अरहतोपें । [ निवासे ] बाहिकार्य निसिदियायं यपज के " " आहरापयति & कालेरिखिता. [ स ] कतसमायो' सुविहितानं' च D (१५) १. पहेला दस अक्षरो जता रह्या छे. दसमो अक्षर वा होई शके कारण के तेनी पछीना अक्षरो सिनो छे. २. करोति ने बदले c मां करड तथा K मां करिति छे, पण मूळ लेखमां करोति स्पष्ट छे. ३. अरहतो नी पछीना अक्षरो घणा झांखा छे. में शंकाथी वांच्या छे. मारुं धारखं छे के जो मूळ लेखनी काळजीपूर्वक तपास थाय तो संतोषकारक पाठ नीकळी शके. यपजके नी पछी ३९ अक्षरो जता रह्या छे अने छेल्ला ५ अक्षरो देखाय छे ते काळे रिखिता छे. "Aho Shrut Gyanam" १. मां कतसमेलं छे. K मां कतसमे अने तेनो छेलो अक्षर शंकायुक्त छे. पण म उपर कोई मात्रा मने जणाती नथी. एक फाटने ली म नो उपरनो लीटो स साथे जोडाई गयो छे, तेथी, हुं वारूं छं के आ वे नकलोमां मात्रा छे. अक्षरना मध्यमां मनो 'आ'कार स्पष्ट छे, छेल्लो अक्षर यो अस्पष्ट छे.
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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