SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृतलेखविभाग। • • • • • मगधान' च विपुलं भयं जनेतो हथिस गंगायं पाययति मगधं च राजानं बहुँ पटिसासिता पादे वदापयति नंदराजनितस अगजिनसँ • • • • • • • • • • • • • • गहरतन पडिहारहि मगधे वसिवु नयरि. १. ० ए मगधानं नो ग मूकी दीधो छे. K ए ग तथा धा बन्ने खोटा कर्या छे. २. भयं ने बदले c मां वियं छे; कारण एम होइ शके के प्रथमना अक्षरना नीचेना भागो जोडवामां आवे छे एम मान्यु हशे. K मां लेयं छे. ३. प्रथमनो अक्षर म आछो छे. ग आछो पण स्पष्ट जणाय छे अने धंच तद्दन स्पष्ट छे. C ए बे अक्षरोनी जग्या राखीने मच लख्या छे. K ए एक अक्षरनी जग्या राखीने धंच लख्या छे. ४. K तथा C बन्नेमां वह छे, पण मने बीजा अक्षरनी नीचे उकार स्पष्ट देखाय छे. ५. K मा पटिसासित अने C मां सटिसित छे, पण मूळ लेखमां पटिसासिता स्पष्ट छे. ६.c मां वदापयति तथा K मां वादापयति छे. पण बन्नेए प उपर जे अनुस्वार गण्यु छे ते मात्र छिद्र छे अने ते पण अनुस्वारनी जग्याए नथी. पहेला अक्षर उपर मूळ लेखमां अनुस्वार नथी, पण त्यां एक जोइए. ७. नितस मांनो स शंकाग्रस्त छे. ० ए वा गण्यो छे अने र ए शंका साथे ठा गण्यो छे, मारुं धारवू एवं छे के ते स छे. बीजा "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy