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________________ प्राकृतलेखविभाग | २९ (८) घातापयिता राजगद्दनपं' पीडापयति' एतिनं च कमपदानपनादेन सवत सेनवाहने विपमुचितुं मधुरं अपयातो' नवमे च [बसे 1 ] पवरको १. अहीं K तथा C बन्नेनी भूल छे बन्नेमां राजगंडभपं छे. जो के अक्षरो झांखा छे तो पण ओळखी शकाय छे. २. K तथा मां बतावेला य नी नीचेना तथा डा नी बाजुना लीटा शिलामां पडेली फाटो छे. अने तेथी तेमने अक्षरो साथे कांइ संबंध नथी. ३. K मां पंबात छे. कारण के अक्षरोनी उपर एक झांखी लीटी जेवुं देखाय छे. K मां प उपरनुं जे अनुस्वार छे ते मात्र छिद्र छे. मां पवंत छे जे भूल छे. पहेला अक्षरनी डाबी बाजुए स नो कीटो छे अने आछो व देखाय छे. C ४. मां पमचितु छे. K खरो छे. ५. C खरो छे. K मां 'यातो ने बदले नतो छे. · ६. न तथा व ए वे अक्षरो स्पष्ट छे मे अने च जो के अस्पष्ट छे तोपण ओळखी शकाय छे. वसे अक्षरो सूचित थाय छे. बाकीनी लीटी जती रही छे. अहीं नहीं एक एक अक्षर देखाय पण कोइ कळी शकाय तेम नथी. ७. C मां आ खरं आभ्युं छे. K मां पपबम छे. " Aho Shrut Gyanam".
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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