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________________ प्राचीनजेनलेखसंग्रह। के आ चार अवस्थानुं मुख्य कारण जे कर्म छे ते तेमने लागता नथी अने तेथी ते मुक्तात्मा कहेवाय छे. स्वस्तिकमां आप्रमाणे सिद्धनी आकृति समाएली छे. जे मध्यबिंदुमाथी चार रस्ता नीकळे छे ते जीव छे अने जे चार रस्ता छे ते जींदगीनी चार अवस्था छे. पण सिद्ध आ चार अवस्थाथी मुक्त होवाथी चारे रस्ताओने पछीथी जे वाळेला छे ते एम जणाये छे के आ चार अवस्था तेमने माटे नथी. हुं एम नथी कहेतो के आ ए स्वस्तिकर्नु मूळ छे. बौद्धो के जेमनां धर्मतत्त्वो जैनोना जेवांज छे ते पण स्वस्तिकनो आवो अर्थ करता होय ए शक्य छे. जो एम होय तो बौद्ध लेखोना आरंभमां सिद्धम् शब्द वपराय छे तेने बदले आ स्वस्तिक पण वपराय छे. दाखला तरीके, उषवदातना नाशिकना नं. १० ना लेखमां आ स्वस्तिक सिद्धम् शब्दनी पछी तरतज मूकेलो छे, आवी रीते वपरायाथी जैनोना आवा अर्थने पुष्टि मळे छे. त्रीजु चिह्न अशोकना जौगड लेखमांना ( ) चिह्नना जेवुज छे. ए तारस ( Taurus ) ना ग्रीक चिह्ना जेवं छे. पहेला बे चिहोनी माफक आ चिह्न लेखोना आरंभमां तथा अंतमां तथा कोइक वखत शोभाने माटे जुदाज आकारमा जोवामां आवे छे. बौद्ध लेखो उपरथी एम जणाय छे के पहेला बे चिह्नो करतां आ चिह विषे तेमनी मान्यता ओछी होय तेम जणातुं नथी. सांची लेखोमां बोधीवृक्षनी नीचे वेदि उपर ते मुकेलं छे. जो ते पूजनीय न होय तो ते आवी जग्याए होइ शके नहि. वळी आ चिह्न घरेणामां तथा जुना बौद्ध सिकाओमां पण जोवामां आवे छे. कान्हेरी नजीक पदण टेकरी उपर बीजां चिह्नोमां आ - मूल पुस्तकमां आ तथा हवे पछी आवनारी दरेक आकृतिओ आपली छे परंतु अत्रे जे आपी शकाणी नथी तेना ठेकाणे ( ) आवा कौंसमा जग्या खाली राखेली छे.-संग्राहक । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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