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________________ ३३ खारवेलना समय विषे जो के हजु सुधी विद्वानोमां केटलोक मतभेद दृष्टिगोचर थाय छे तो पण अधिकांश विचारो पंडित भगवानलालना मतने ज मळता थता जाय छे अने तेमां श्रीकेशवलालना निर्णये सबळ पुष्टि आप छे तेथी हवे घृणा भागे ए ज समय निश्चित रुप लेशे. आ लेखथी जैनधर्म उपर पडतो प्रकाश. खारखेलना आ लेखे जैनधर्म अने तेना इतिहास उपर केटलोक अपूर्व प्रकाश पाड्यो छे. अनेक नवी बाबतो आ लेख उपरथी जाणवामां आवी छे, तथा विचारवा जेवी जणाइ छे. तेमांनी मुख्य मुख्य आ छे: —— अने तेमना १. जे केटलाक आधुनिक पाश्चात्य विद्वानो, संसर्गथी केटलाक भारतीय पंडितो पण, प्रथम एम धारता हता के जैनधर्म कोइ पण वखते राज्यधर्म तरीके स्वीकारायो नहोतो अथवा तो अशोक अने कनिष्क विगेरे राजाओए जेम बौद्धधर्मनी उन्नति माटे प्रयत्नो कर्या तेम जैनधर्म माटे कोइए कांइ कर्य नथी; ते बधाने आ लेखे खोटा पाड्या छे, अने जैनधर्मना प्राचीन गौरवने तेमना हृदयमां यथोचित स्थान आप्युं छे. तेमने एम कबूल करता बनाव्या छे के जैनधर्म पण पूर्वे अनेक देशोमा अने अनेक राजवंशोमां राज्यधर्म तरीके पळायो छे. तेनी असर प्रजाना पण म्होटा भाग उपर थइ हती अने ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य विगेरे दरेक वर्णोमां ते प्रचलित थयो हतो. जैन ग्रंथोमां जे अनेक ठेकाणे राजाओनां जैनत्वमाटे वर्णनो आवे छे ते केवळ धर्मना महात्म्यने वघारवा माटे कल्पितरुपे बनावी लीघां छे एम ज नथी परंतु तेमां जैतिहासिक सत्य पण होई शके छे एमआ लेख उपरथी मानी शकाय छे, "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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