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________________ लागेलां हिंदुस्थाननां लोकोनां पहेलानां घरो छ." आ गुहाओना मूळ तथा उत्तरोत्तर वधारामां आ विद्वानो तेमनो विस्तार ( Evolution) गणे छे. खेदनी वात छे के आ शब्द ( Evolution ) अयोग्य स्थळे वापरवामां आवे छे. प्रो. हक्षलीए 'सायन्स अने कल्चर' नामना पुस्तकमां कयुं छे के “ केटलांक सत्यो दंभी शरु थाय छे अने शंकामा विराम पामे छे. " आ शब्दो अभिव्यक्तिवाद ( Theory of Fivolution ) ने माटे तद्दन खरा छे. उदयगिरिनी गुहाओनी उत्तरोत्तर वृद्धि शोधवानो मुख्य हेतु ( म्हारा धारवा प्रमाणे ) ए छे के, जे गुहाओ घणा कोतरकामवाळी छे ते अर्वाचीन छ अने ते परदेशी असरथी थयेली छे. तथा पत्थरनु शिल्पकाम ग्रीक लोकोए दाखल कयुं छे, आ बाबत पूरवार करावनारी छे. उदयगिरि अने खंडगिरिमां बौद्ध श्रमणो रहेता हता अने ते यात्रानां स्थळ हता. कलिंगना राजाओए जुदे जुदे वखते आ श्रमणो माटे तथा अन्य धार्मिक हेतुओथी आ गुहाओ तैयार करावी हत्ती. गरीब तथा तवंगर बधा, श्रमणो माटे, आवी गुहाओ खोदी तैयार करे ए घणी उंडी धार्मिक श्रद्धाने लीधे छ; अने खरेखर गरीब तथा तवं. गरना गजा प्रमाणे आ गुहाओ ' कुतरानी बोड ' जेवी अगर विशाळ थती. जो कोई तवंगरना महेलनी साथे ज कोईक भिखारीनी झंपडी आवी होय तो ते झुपडी महेल करता जुनी छे एम मान, भूलभरेलु नथी ! हवे आपणे बीजी रीते जोईए. धार्मिक श्रद्धानो प्रथम आविभर्भाव उदार कामोमां थाय छे अने वखत जतां ते रुढ ( Convent ional) थाय छे. तेथी प्ररुढ धार्मिकश्रद्धानो आविर्भाव कळानां "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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