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________________ जेमनी प्राचीन प्रभुताना प्रकाशमय किरणो आमां अंकित थयेला छे ते जैनोमांथी हजी सुध! कोईने एनुं नाम पण जणायु-संभळायुं नथी ! ___ श्रमणभगवान् श्रीमहावीरदेवना निर्वाण बाद उदायी, चंद्रगुप्त, संप्रति अने विक्रमादित्य आदि नृपतिओ जैनधर्म पाळनारा अने जैनशासननी प्रभावना करनारा थइ गयाना उल्लेखो केटलाक जैनग्रंथोमां जोवामां आवे छे, परंतु ते कथननी सत्यता सिद्ध करनार एक पण ऐतिहासिक प्रमाण-के जेने निःशंक रीते सर्व कोई स्वीकारी शके-आज सुधीमां उपलब्ध थयुं नथी. जे ग्रंथोमां उपर्युक्त राजाओने जैनधर्मानुयायी जणाव्या छे ते ग्रंथो घणा पाछळना समये लखायला छे तेथी तेमना कथन उपर पुरातत्त्वज्ञो बहु विश्वास नथी राखता. कारण के आवा ग्रंथोक्तवर्णनोमाथी घणा खरा इतिहासनी दृष्टिए निमूल ठयों के अने ठरता जाय छे. दृष्टान्त तरीके जे विक्रमादित्य नामना राजाना विषयमा अनेक चरित्रो अने आख्यानो लखायां छे अने जेना नामथी आजे आखा भारतवर्षमा ( लगभग १२००-१५०० वर्षी ) राष्ट्रीय संवत् प्रवर्ते छ तेना अस्तित्व अने समय सुधा माटे पण आजना अनेक ऐतिहासिको शंकाशील छे !. महत्त्वना ऐतिहासिक साधनो. ऐतिहासिक साधनोमा शिलालेखो, ताम्रपत्रो अने शिकाओ सौथी वधारे महत्त्वना अने निःशंसय रीते प्रामाणिक गणाय छे. कारण के तेमां जे हकीकत आलेखेली होय छे ते, ते वखते बनेली अगर विद्यमान होय छे. किंवदन्ती के अतिशयोक्तिने तेमा बहुज अल्पस्थान मळे छे. कृत्रिमतानो संभव तेमां कल्पी शकातो नथी. आथी करीने पुरातत्त्वज्ञो जेटलो विश्वास ए साधनो उपर राखे छे तेटलो ग्रंथो उपर राखता नथी. अंथकारो पोतानी हयातीमां बनेली अने पोते खास "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009685
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1917
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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