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________________ वक्तव्य इतिहास मानव जीवन का एक प्रेरणा सूत्र है जिसके द्वारा मनुष्य को भूतकालीन अनेक तथ्यों की जानकारी मिलने के साथ साथ महान् प्रेरणा भी मिलती है। सत्य की जिज्ञासा मनुष्य की सबसे बड़ी जिज्ञासा है। इतिहास सत्य को प्रकाश में लाने का एक विशिष्ट साधन है। इ-ति-हा-स अर्थात् ऐसा ही था इससे भूतकालीन तथ्यों का निर्णय होता है। __इतिहास के साधनों में सबसे प्रामाणिक साधन शिलालेख, मूर्तिलेख, ताम्रपत्र, सिक्के, ग्रन्थों की रचना व लेखन प्रशस्तिथे, भ्रमण वृतान्त, चरित्र, वंशावलिये, पट्टावलिये आदि अनेक हैं उनमें शिलालेख से ग्रन्थ प्रशस्तियों तक के साधन अधिक प्रामाणिक माने जाते हैं क्योंकि एक तो वे घटना के समकालीन लिखे होते हैं दूसरे उनमें परिवर्तन करने की गुंजाइश नहीं रहती है और वे बहुत लम्बे समय तक टिकते भी हैं। भारत का प्राचीन इतिहास पुराणों आदि धार्मिक ग्रन्थों के रूप में भले ही लिखा गया हो पर जिस संशोधनात्मक पद्धति से लिखे गये ग्रंथों को विद्वान लोग आज इतिहास मानते हैं वैसे लिखे लिखाये पुराने भारतीय इतिहास नहीं मिलते। ऐतिहासिक साधनों की कमी नहीं है पर ऐतिहासिक दृष्टि से उनमें से तथ्यग्रहण करने की वृत्ति की कमी है। भारत के प्राचीनतम इतिहास के साधन पुरातत्व के रूप में हैं ये खुदाई के द्वारा भूगर्भ से प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदाड़ो एवं हडप्पा आदि में प्राप्त वस्तुएँ प्राचीन भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालती हैं। हर वस्तु अपने समय से प्रभावित होने से उस समय की अनेक बातों का प्रतिनिधित्व करती है। साहित्य में भी समकालीन समाज का प्रतिनिधित्व रहता है पर उसमें एक तो अतिरंजना और पीछे से होनेवाले सेलभेल व परिवर्तन की संभावना अधिक रहने से उसकी प्रामाणिकता का नम्बर दूसरा है। हमारे वेद, पुराण, आगम आदि ग्रन्थ अपने समय का इतिहास प्रकट करते हैं पर उनमें प्रयुक्त रूपकों व अलंकारों से इतिहास दब जाता है जब कि भूगर्भ से प्राप्त साधन बड़े सीधे रूप में तत्कालीन इतिहास को व्यक्त करते हैं यद्यपि उनके काल निर्णय की समस्या अवश्य ही कठिन होती है अतः काल निर्धारण में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है अन्यथा एक तथ्य के काल निर्धारण में गड़बड़ी हुई तो उसके आधार से निकाले गये सारे तथ्य भ्रामक एवं गलत हो जायेंगे! __भूगर्भ से प्राप्त वस्तुओं के बाद ऐतिहासिक साधनों में प्राचीन शिलालेख, मूर्तियें एवं सिक्कों का स्थान है। ताम्रपत्र इतने प्राचीन नहीं मिलते। कुछ मूर्तिये व स्थापत्य अवश्य प्राप्त हैं। "Aho Shrut.Gyanam" |
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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