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________________ [ 8 ] १० सं० १७०७ चै० सु. १३ मानसिंह चोरवेड़िया महिमादे बोथरा दुर्जनमल ५ ११ सं० १७१३ पासो० ब०४ देवकरण १२ सं०१७२३ __ लखजी बच्छावत लखमादे चोरवेढ्या पदम ३० १३ सं० १७२४ मि० ब०६ पासदत्त नाहटा वीरादेवी राजावल लंदा १४ सं०१७२५ व० ब०१३ सुखमल बोहरा (अभोरा) सोभागदे सुराणा दस्सू १५ सं० १७२७ ज्ये० ब०६ उत्तमचन्द कूकड़चोपड़ा ऊमादे १६ सं० १७३१ आ० सु० ११ पारस बहुरा कोचर पाटमदे संघवी दुर्जनमल। १७ सं०१७३७ फा.ब.६ केसरीचन्द नाहटा केसरदे १८ सं०१७४०० सु०१२। ईसरदास बोथरा अमोलखदे १६ सं० १७४२ फा० सु०६ दुलीचन्द मालू जगीशादे २० सं० १७५१ आ० ब०१२ विजयमल संघवी पीवसुखदे गोलछा २१ सं० १७५२ फा० सु०६ गिरधरदास वैद मृगा बोथरा गोपालदास ३ २२ सं० १७६४ ज्ये० ब० १३ हणूतमल सिंघवी सोभागदे घोड़ावत २३ सं० १७६४ मि० ब०७ आसकरण सिंघवी महिम। २४ सं० १७७७ मा० सु०२ मु. भारमल वैद (१) विमलादे २५ सं० १७८३ आ० सु० १५ मुकनदास भंडारी महासुखदे २६ सं० १८१० श्रा० ब०११ श्रोचन्द राखेचा जगीसादे २७ सं० १८५१ आ० ब०१५ कानजी सुराणा धाई मुहणोत गंगाराम २८ सं० १८५१ चै० ब०१० गिरधारीलाल दसाणी चतरो कावड़त बच्छराज २६ सं० १८६० श्रा० सु०८ सरूपचन्द छाजेड़ गंगा बेगाणी किनीराम २१ ३० सं० १८६६ ज्ये० सु० १५ नैनरूप (पुत्र) सुराणा सबलादेवी विशेष ज्ञातव्य १-लेखाङ्क २१ में सनी होने के १५ वर्ष बाद सं० १८७५ में छत्री-देवली प्रतिष्ठित हुई। २-लेख नं. १ और नं०२६ में माता सतियों के लेख हैं। ३-लेखाङ्क १३, १४ और २१ की सतियों के पति क्रमशः नारायणा, आउवा और हैदराबाद में स्वर्गस्थ हुए जिनकी पत्नियां यहां सती हुई। अंतिम तीन लेख कोडमदेसर, मोटावतो और मोरखाणाके हैं। ४-इन लेखों में वैदों के ४, बहुरा कोचर १, बहुरा अभोरा १, सुराणा २, चोरड़िया १, पुगलिया राखेचा १, सिंघवी ३, कोठारी १, छाजेड़ १, बोथरा २, राखेचा १, मालू १, नाहटा २, दसाणी १, भंडारी १, बहुरा १, बच्छावत१, लूंकड़ १, जाति के हैं। लेखाङ्क २५, २६ के स्मारक भी चोपड़ा कोठारियों के कहे जाते हैं। ५-लेखाङ्क १८ के पूर्वज पहले मेवाड़ देश के जावर ग्राम निवासी थे। ६-इन लेखों में ३ कर्णसिंहजी (नं० ४, ५, १७), १ कर्णसिंहजी अनूपसिंहजी (नं० २३) और २ सूरतसिंहजी (नं० १०, २१) के राज्यकाल के हैं। --यहां जिन लेखाकों का निर्देश किया गया है वे इस पंथ के सीरियल नम्बर न होकर केवल सतियों के क्रमिक नम्बर है और उनका स्थान भी वहीं फुटनोट में लिख दिया गया है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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