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________________ ( २००) पिता माता, पितृजन चांपा, हेमा, भात बीजा और अन्य सर्व पूर्वजों के कल्याणार्थ श्रीशीतलनाथ चतुर्विशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगन्छीय श्रीसोमचन्द्ररि के पट्टाधीश श्री उदयदेवमरि के द्वारा हुई। सेठों की सेरी के श्रीवीरचैत्य की चौवीशी तथा पंचतीर्थयां (२३) सं० १४८३ ज्येष्ठक०८ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० सिम्बा मा० लखमादे पुत्र सलखा भा० प्रेमलदे पुत्र गोला, लीम्बा, सिंहने अपने माता पिता के कल्याणार्थ श्री नेमिनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रह्माणगच्छीय श्रीवीरसूरि के पट्टाधीश श्रीमणिचन्द्रसूरिने की। (२४) . सं०१५०५ चैत्रकृ०१३ रविवार के दिन राथरनिवासी श्रीब्रमाणगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. वाघण पुत्र मेघा (मेघराज) भार्या श्रीमलदेवी पुत्र खीमा, गोसल, देसल, गोसल की पुत्री सिंगारदे पुत्र बहुआ, कर्मसिंहने अपने पितृजनों के श्रेयार्थ श्रीविमलनाथ चतुर्विशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीपञ्जुन(प्रद्युम्न)हरिने की। (२५) सं० १५२५ फाल्गुनशु०७ शनिवार के दिन तड़वाड़ा "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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