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________________ [ छ ] मुनियों में इतिहास के प्रति शुरू से रुचि रही है। ब्राह्मणों की अपेक्षा जैन मुनियों ने इस दिशा में अधिक कार्य किया है। डॉ. गेरिनॉट ने इस १६०५ तक के प्रकाशित लेखों में से ८५. लेखों का प्रमाणिक विवेचन किया। इसमें २२०० वर्षों का जैन इतिहास सुरक्षित है। जैन मूर्तियों के लेखों का संकलन करने वाले विद्वानों में मुनि जिनविजयजी, धर्मसूरिजी, बुद्धिसागरजी, बाबू पूर्णचन्दजी नाहर, अगरपन्दजी नाहटा, भवरलालजी नाहटा, बाबू कामताप्रसाद जैन और बाबू छोटेलाल जैन श्रादि कुछ प्रमुख है। प्रसुत "जैन धातु प्रतिमा लेख" के पीछे भी छोटा सा इतिहास है। इसे देना उचित समझता हूं। १६३६ की बात है, उन दिनों मैं परमपूज्य गुरुमहाराज श्रीउपाध्याय मुनि श्रीसुखसागरजी एवं ज्येष्ठगुरुबन्धु मुनि श्रीमंगलसागरजी महाराज के साथ बम्बई में चातुर्मास व्यतीत कर रहा था। गुजराती जैन साहित्य के प्रकांड पंडित और अध्यवसायी विद्वान् स्व. मोहनलाल दलीचन्द देसाई B. A. LL. B. एडवोकेट, मेरे संग्रह की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के अवलोकनार्थ अक्सर पाया करते थे। इतिहास और संशोधन की ओर मुझे मोड़ने वाले दो चार व्यक्तियों में देशाई भी थे। एक दिन प्रतिमालेखों की बात चली पड़ी। देशाई ने कहा कि हम लोग गवेषणा के लिये बाहर जाते हैं तो वहां के मूर्तिलेख वगैरह संग्रहीत कर लेते हैं, पर बम्बई में इतने वर्ष रहने के बाद भी यहाँ का कार्य अभी तक प्रारम्भ ही नहीं कर सके है। मुझे यह बात उसी समय चुभ गई और निश्चय किया कि कम से कम बम्बई के समस्त जिनमंदिरस्थित धातु और प्रस्तर मूर्तियों के लेख ले लिये जाय, यद्यपि उन दिनों लिपि विषयक मेरा शान अत्यन्त सीमित था, परन्तु देशाई और पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्रीजिनविजयजी का सहयोग न मिलता तो मेरा उत्साह वहीं ठंडा हो जाता । मैं लेखों को एकत्र कर उभय विद्वानों को बताता, वे भूले निकालो, फर मैं मूल लेखों से मिलता, इस प्रकार छ: मास में मैंने बम्बई के लेख तो "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009681
Book TitleJain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year1950
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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