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________________ परिशिष्ट । [२१ संवत १६७५ वैषाख सित १३ शुक्र ..............१ । भमती लगती देहरी तिणरी विगती संवत १६७५ माघवदि ४ मेमदाबादवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय लघुशाखायां का० भ० विमलादे सुत श्रीपारसबिम्ब प्रतिष्ठतं बृहत्खरतरगच्छाधिराज भट्टारक श्रीजिनराजसूरिभिः बिम्ब ३ है। चरणपादुका चार है। तिणमें २ भगवान का २ साध्वी राज्यसरी (श्री) उदेश्री रा है। देहरी एक गणधरपादुकारी १४५२ है तिगरी विगत ।। ५०॥ नमः श्रीमारूदेवादि वर्द्धमानान्ततीर्थकराणाश्री पुण्डरीकांद्यगौतमस्वामिपर्यन्तेभ्योगणधरेभ्यः सभ्यजनेभ्यःपूज्यमानेभ्यःसेव्यमानेभ्यः। संवत १६७५ वैशाष सुदि १३ शुक्र प्रागवाटज्ञातीय सा० रूपजीकेन सार परिवारसहितेन श्रीकवड़यक्षमूर्ति कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनराजसूरिभिः। बृहत्खरतरगच्छे । संवत१६७५ वर्षे वैशाख शुदि १३ शुक्र अहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय सं० रूपजीकेन भार्या जेठी पुत्र उदवन्त बाईकोडि कुंअरि प्रमुखपरिवारसहितेन परमहिताय श्रीचक्रेश्वरीमूर्वि कारिता प्रतिष्ठ, श्रीजिनराजसरिमिः। खरतरगच्छेश्वरे:॥ आगे देहरी तिणमे प्रतिमा ५ मूलनामो नहीं है। बगल मे प्रतिमा है तिषमे नामौ है १ यह लेख भी प्राचीन जैनलेख संग्रह में छप चुका है। अन्तर केवल इतना ही है कि इसमें शान्तिनाजिनबिम्बं भरवाने का उल्लेख है। २.यह लेख भी "प्राचीन जैन लेखसंग्रह" पृ० ३४ पर मुद्रित हो चुका है। अतः यहां देना उचित नहीं सममा मया । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009681
Book TitleJain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year1950
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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