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________________ महत्व के लेख ओर प्रेम जैसलमेर के जिनने लेख इस संग्रह में छपे हैं उन में से कईएक शेिष महत्व के हैं। इस रखने वाले सज्जनों की दृष्टि निम्न लिखित लेखों पर आकर्षित करता हूं :---- (१) तपपट्टिका :- जैसलमेर दुर्ग पर श्रीसंभवनाथजी के मंदिर में पोले पापान में खुदा हुआ नापट्टिका का एक विशाल शिलालेख रखा हुआ है। यह कुछ ऊपर की तरफ से टूटा हुआ है ! यह लेख { नं० २१४४ ) पृ० २२---३२ में छपा है । आज तक मैंने जितने शिलालेख देखे कहों पर भी अपने जैनागम के अनुसार तपविधि का कोई शिलालेख मुझे नहीं मिला । और २ लेखों के संग्रह में भी ऐसे कोई शिलालेख का उल्लेख नहीं है । इस पट्टिका में तपविधि के साथ तीर्थंकरों को पांचों कल्याणक की , तिथियां भी सुटी हुई हैं। श्रीशांतिनाथजी के मंदिर बनवाने वाले सा० घेता ने इसकी प्रतिष्ठा कराई यो । आमूतीर्थ में कल्याणक तिथियों का एक शिलालेख है जो वहां के देलवाड़ा मन्दिर की प्रदक्षिणा में देवडो के द्वार पर लगा हुआ है । यह भो अद्यावधि किसो जगह प्रकाशित देखने में नहीं आया ! परिशिष्ट में यसका अक्षरान्तर और चित्र भी उपयोगो समझ कर दिया गया है । ... (२) शतदलपन यंत्र प्रशस्ति :-- लोगपुर के वर्तमान मंदिर की प्रशस्ति जो इस पुस्तक के पृ० १६०-१६६ में छपी है वह भी एक अपूर्व शिलालेख है । पाठक उस लेख के नोट को अवश्य पई और प्राचीन कीर्ति और विद्वता. को स्मरण कर आनन्द अनुभव करें। (३) पट्टावली पट्ट:- लोद्रपुर के उसी मंदिर के चार कोने में जो चार छोटे मंदिर हैं उन में से उत्तर पूर्व को तरफ के मंदिर ६० ४ में श्रीमहावीरखामा से लेकर श्रीदेवद्धिंगणि क्षपाश्रमण तक जो पट्टावली का शिलालेख है ऐवा पट्टायली पट्टक भो देखने में कहीं नहीं आया। प्राचीन जैन इतिहास लेखकों के लिये यह कड़े काम की है । यह लेख नं० २५७४ पृ० १७५-१८४ में नोट के साथ छपा है । - इन जैसलमेर के महत्वपूर्ण लेखों के छाप संग्रह करने में मुझे बहुत ही कठनाई पड़ो थो। मैं वगैदा सेंट्रल लाइब्रेरी से इन सों के छार मंगवाने की कोशिश की थी पन्नु वहां से प्राप्त नहीं हुआ । इस सुंदर मरुभूमि के ऐसे आवश्यकीय लेखों के चित्र अप्रकाशिन रखना भो कर्तव्य न था। जो छाप छोड़े समय में वहां से लेकर साथ में लाये थे वे ब्लक बनवाने के अयोग्य थे । अन्त में यहीं बड़े परीश्रम और अर्थव्यय से उन छापों को ही सुधार कर ब्लकस् तैयार कराये गये हैं और उनसे जो वित्र बने है वे पाठकों की सेवा में उ.स्थिन किये गये। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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