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________________ [१९७१] दादाजी के स्थान पर । शिलालेख नं० १ [ 2585] * (१) ॥ संवत् वह्निग्रहादिनागचन्द्रवर्षे (१८५३) ( 2 ) कार्त्तिकमासे शुक्लपदे अष्टम्यां तिथौ (३) भृगुवारे ऋतो (?) श्री श्रीवृदत्तखरतरग (४) । श्री जिनसूरिजिः पं० खूबचंद शि ( ५ ) ष्य । पं । प्र । जगविशालमुनि उपदेशात् दादा (६) जी श्रीजिनकुशलसूरिश्वर जीर्ण पाडुका ( 3 ) परि नवीन थुंनशाना कृता श्रीब्रह्मसर ग्रामे ( ७ ) श्रोशवाल समस्त श्रीसंघ सहितेन प्रतिष्ठा कृ ( ९ ) ता महारावल श्रीगजसिंहजी वारे तथा सी (१०) यड़ जोजराज श्रीब्रह्मसर कुंडात् पश्चिम दिशे थुं ( ११ ) नशाल स्थापना कृता १८९३ गजधर सरूपा ॥ शिलालेख नं० २ [ 2586] + ॥ सेव चांदमलजी बाफना की तरफ से मरामत करी सं० २०६२ सांवण सुद २ * ब्रह्मसर से लगभग एक मील उत्तर की तरफ दादाजी का स्थान । यह लेख मंदिर के बांये तरफ दीवार पर हैं । मंदिर के नवीन फर्श पर यह लेख है । 49 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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