SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७४ ] (३) कनकादे पुत्ररत्न हरराजेन प्र० युगप्रधान श्री जिनसिंहमूरिपट्टप्रनाकर श्रीजिनराजसूरि निः॥ स्तंन पर। [2569] * (१) संप १६५३ मार्गशीर्ष सुदि (२) ए जणशाली संघवी थाह (३) रूकण श्रीअजितदेव गृ (४) ह पुत्ररत्न हाराज पुण्या (५) धमकारि प्रा श्रीजिन (६) राजसूरिभिः ।। मंदिर नं०३ मूलनायकजी पर। [2570] + (१) गछाधीशैः॥ (१) ॥ संघ १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १५ गुरौ श्रीसंनवनाथ विंब का न श्री. मल पुत्ररत्न जा थाहरू नार्या श्राप (३) कनकादेव्या प्र० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रजाकर श्री जिनराजसूरि निः श्रीवृहत्खरतर * मंदिर के तोरण स्तंभ पर छ: इंच लम्बा और ७ इंच चौड़ा छः पंक्तियों का यह लेख है। यह (5.0., No. 21. के परिशिष्ट नं० ११ में छपा है। ___ यह मंदिर मूल मंदिर के पश्चात् भाग में उत्तर पच्छिय कोण में है और यह लेख मूलनायकजी की छेत्र पाषाण की मूर्ति पर है । इस लेख का अन्तिम अंश गच्छाधीशैः' ऊपर के भाग में खुदा हुआ है इसलिये यहां पर भी उसी प्रकार दिया गया है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy