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________________ [ ११ ] रौप्य गट्टाजी पर | [2559] ॥ बादरमलजी जोगी /दासाथी लूनावत रुपसिया वा० सं० १९३३ जा ॥ कत्तिक सु० १५ {2560] श्रीपदजी महाराज को चढ़ाई चा साबूदे देदारामजी साणी गांम वैसा - लगवासी श्रीजी चढ़ायो सं० १९५१ रा मिगसर सुदि ३ । सरूपचंद का [ 2561] श्री चिंतामण पार्श्वनाथजी रे आगे फाती चढ़ायो कोइ उगवण पावै नही aisaपुरे नवलषोजी रे मंदर में जीदोषी "घरवाओ लबमो चढायो सं० १९२६ पोस सुदिप रोवार [ 2562] ( १ ) सं० १६७३ मार्गशीर्ष सुदि ए सं० थाहरू क यु १) तेन जगिनी सजना स्वमातृ चापलदे जरां (३) बी पाडुकाः ॥ प्र० श्री जिनराज सूरि ... बाहर के चरणों पर | [ 2563] * || सं० १७५० मिगसर यदि ए दिने श्री जिनकुशलसूरि पाडुके । कारापिता । स । दमसी जेराज श्रेयोर्थं * यह श्वेत पत्राण के चरण मंदिर के बाहर घांये तरफ विराजमान हैं । 44 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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