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________________ [ १३४ ] ( ३ ) राज्ये पं० इ० श्री १०८ श्रीगांगजीगणिनां घुंजपाडुके कारापि ( ४ ) तं प्रतिष्ठितं च शिष्य । पं० रूपचंदेन चातृव्य पं० बखता सहते. ( ५ ) न ॥ शुनं जयतु ॥ सूत्रधार आजमेन कृतं [ 2513] * संवत् १६४४ वर्षे आषाढ वदि ए सनवारे गुहिल पापा धनार्थी देवलोक मत्ता कासपस गोत्रे [2514] + (१) ॥ संवत् १६७७ वर्षे शाके १५४१ [ प्रवर्त्तमा ] ( २ ) ने जाइव मासे शुक्लपक्षे २ तिथौ श्रीवाचना ( ३ ) चार्य श्रीवर्णदत्त श्रीकमलोदचगणित ( ४ ) तू शिष्य शिरोमणि प० वर्षकीर्त्ति प० श्री ( 4 ) देवसार ( १ ) ति पाडुका ॥ [ 2515] + ( १ ) ॥ संवत् १६८३ वर्षे मगसिर वदि २ दिने श्री जे ( २ ) सलमेरुकोट्टे रावल श्री कल्याण ( ३ ) जी विजयराज्ये ॥ श्रीखरतरगछे । (४) जट्टारक श्री जिनराजसूरिविजय. * यह कालानसर के मसान की छतरियों का लेख है। इस छतरी में हाथ जोड़े हुए बड़ी स्त्री-मूर्ति है। ++ ये दोनों लेख भी कालानसर के मसान के हैं। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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