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________________ [११] श्रीसिद्धचक्रयंत्रः कारितः प्रतिष्ठितश्च । न । श्रीजिनचंजसूरिनिः। श्रीजेसलमेरुनगरे ॥ श्रीरस्तु ॥ शुनं जवतु॥ ताम्र के यंत्र पर। [2493] ॥ सं० १९५५ का माघ सुदि गुरुवासरे यंत्र प्रतिष्ठापितं वृ० । ०। श्रीजिनमुक्ति पूरि निः । रतलाम नगरे कारितं । पं० । प्र० सरूपचंदजी स्वश्रेयोर्थ ॥ दादा वाड़ी। श्रीजिनकुशलसूरिजी का स्थान । * प्रशस्ति x [2494] (१) ॥ संवत् १६५० वर्षे श्राषाढ मासे शुक्लपक्ष युत नवमीदिने (३) रव(वि)वारे चित्रानक्षत्रे रावन श्रोनोमजीविजयिराज्ये श्री (३) श्रीजिनकुशवसूरोणां पायुके कारिते युग प्र. (४) धान श्रीजिनचंसूरीश्वराणां आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि (५) समलत्क(कृ)तानामादेशेन श्रोपुण्यसागर महोपाध्यायः * जेसलमेर शइस से उत्तर की तरफ एक मील पर देदानसर तालाब के पास यह स्थान है। * यह शिलालेख श्रोजिन कुशलपूरिजी के स्थान पर पाले में लगा हुआ है। 31 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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